मनु स्मृति, पुराण आदि स्मृति ग्रंथों में उन लोगों के बारे में बताया गया है, जो अधार्मिक होते हैं। इन लोगों की पहचाना करना जरूरी है और इनसे दूर रहने में ही धर्म और देश की की भलाई हो सकती है।
यह चार तरह के ऐसे लोग हैं जो धर्म, समाज और देश को किसी न किसी रूप से नुकसान पहुंचाते रहते हैं। कुछ जानकर और कुछ अनजाने में। आओ जानते हैं ये किस तरह के लोग हैं।
अगले पन्ने पर पहले तरह का अधार्मिक...
धार्मिक होने का भ्रम पाले लोग : बहुत से ऐसे लोग हैं जो धार्मिक होने का भ्रम पाले हुए हैं। ऐसे लोग हिन्दू धर्म का अधकचरा ज्ञान नहीं रखते हैं। इसी आधार पर वे धर्म के बारे में अपनी मनमानी व्याख्या बनाकर समाज में भ्रम फैलाते रहते हैं। ऐसे लोगों से राष्ट्रसेवा की कामना नहीं की जा सकती है।
अगले पन्ने पर दूसरे तरह का अधार्मिक...
विश्वास बदलने वाले वाला : जो धर्म का सच्चा ज्ञान नहीं रखते और जो प्रचलित मान्यताओं पर ही अपनी धारणाएं बनाते और बिगाड़ते रहते हैं वे विश्वास बदल-बदल कर जीने वाले लोग हैं। वे कभी किसी देवता को पूजते हैं और कभी किसी दूसरे देवता को। उनका स्वार्थ जहां से सिद्ध होता है वे वहां चले जाते हैं। ये यदि किसी गधे को भी पूजने लग जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।
ये नास्तिक भी हो सकते हैं और तथाकथित आस्तिक भी। ये मंदिर जा भी सकते हैं और नहीं भी। इनके विचार बदलते रहते हैं। ये कभी किसी को सत्य मानते हैं, तो कभी अन्य किसी को तर्क द्वारा सत्य सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। ये नास्तिकों के साथ नास्तिक और आस्तिकों के साथ आस्तिक हो सकते हैं।
अगले पन्ने पर तीसरे तरह का अधार्मिक...
गफलत में जीने वाला : ऐसे लोगों को कभी लगता है कि ईश्वर जैसी कोई शक्ति जरूर है और कभी लगता है कि नहीं है। वे उनका दर्शन खुद ही गढ़ते रहते हैं। ऐसे लोग कभी धर्म या ईश्वर का विरोध करते हैं तो कभी तर्क द्वारा उनका पक्ष भी लेते पाए जाते हैं। ऐसे विकारी और विभ्रम में जीने वाले लोगों के बारे में धर्मशास्त्रों में विस्तार से जानकारी मिलती है और ऐसे लोग मरने के बाद किस तरह की गति को प्राप्त होते हैं, यह भी विस्तार से बताया गया है।
अगले पन्ने पर चौथे तरह का अधार्मिक...
नास्तिक लोग : चार किताबें वामपंथ की और पांच किताबें विज्ञान की पढ़कर बहुत से लोग नास्तिक हो गए हैं। ऐसे लोग अपनी जवानी में नास्तिक होते हैं। अधेड़ अवस्था में उनका विश्वास डगमगाने लगता है और बुढ़ापे में वे मन ही मन ईश्वर के बारे में सोचने लगते हैं। हो सकता है कि ऐसे लोग दिखावे के लिए नास्तिक हों। खुद को आधुनिक घोषित करने के लिए ऐसे हों या अपने किसी स्वार्थ को सिद्ध करने या साहित्य की दुकान चमकाने के लिए वे ऐसे हों।
ऐसे लोग जिंदगी के दुखदायी मोड़ पर कभी भी किसी पर भी विश्वास कर बैठते हैं। ऐसे लोग खुद पर भी भरोसा नहीं करते और ईश्वर पर भी नहीं। ये लोग मंदिर नहीं जाते। यदि वे कट्टर अविश्वासी हैं, तो उम्र के ढलान के अंतिम दौर में उन्हें पता चलता है कि सब कुछ खो दिया, अब ईश्वर हमें अपनी शरण में ले लें। ये अधार्मिक होते हैं। देश और धर्म को सबसे ज्यादा ये ही लोग नुकसान पहुंचाते हैं।
अगले पन्ने पर पांचवीं तरह का अधार्मिक...
खुद परस्त : ऐसे बहुत से लोग हैं, जो दूसरों पर नहीं, खुद पर ज्यादा भरोसा करते हैं। ये मानते हैं कि व्यक्ति को प्रेक्टिकल लाइफ जीना चाहिए। ये लोग मानते हैं कि ईश्वर के बगैर भी जीवन की समस्याओं को वे स्वयं सुलझा सकते हैं। ये भी अधार्मिक होते हैं।
इनकी ये धारणा विज्ञान और मोटिवेशन की किताबें पढ़कर निर्मित होती है। ये अपनी सोच को बाजारवाद या पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होकर निर्मित करते हैं। ये अहंकारी भी होते हैं। हालांकि ऐसे लोग आधुनिकता के नाम पर वक्त के साथ रंग बदलते रहते हैं।
अगले पन्ने पर छठी तरह के अधार्मिक...
पर-निर्भयी : अधिकतर लोगों को स्वयं पर और परमेश्वर पर भरोसा नहीं होता। वे कबूल करते हैं कि उनमें कोई सामर्थ्य या ज्ञान नहीं है, परंतु उनको विश्वास भी नहीं होता कि परमेश्वर उनके लिए कार्य करेगा। वे समझते हैं कि हम तो तुच्छ हैं, जो परमेश्वर होगा तो हमारे लिए कार्य नहीं करेगा। ऐसे विश्वासी भी प्रार्थनारहित जीवन जीते हैं। वे प्रार्थना भी करते हैं तो उनकी प्रार्थना में कोई विश्वास नहीं होता। विश्वास है लेकिन खुद को हीन और तुच्छ समझते हैं। ऐसे लोग भी दुखी होकर दूसरों को भी सुखी नहीं कर पाते हैं।
अगले पन्ने पर अंत में धार्मिक लोग...
सही ज्ञान से हासिल विश्वास : ज्ञान से हासिल विश्वास का अर्थ होता है कि जिसने धर्म का गहराई से अध्ययन किया और जिसने जिंदगी के हर पहलू को समझा, वे ही विश्वास की सही राह पर हैं। दूसरे प्रकार के विश्वासी भी होते हैं, जो संपूर्ण रूप से परमेश्वर के होने में विश्वास तो करते ही हैं और वे अपने अच्छे और बुरे सभी कर्मों को परमेश्वर को ही समर्पण कर देते हैं। वे परमेश्वर के होने या नहीं होने पर किसी से किसी भी प्रकार का तर्क नहीं करते।
वे जरा भी भय, अविश्वास और भ्रम की भावना में नहीं रहते हैं। उनका विश्वास होता है कि परमेश्वर से बढ़कर कोई शक्ति नहीं और वह सभी को भरपूर रूप से आशीर्वाद देने वाला है। परमेश्वर कभी किसी का बुरा नहीं करता चाहे कोई कितना ही बुरा क्यों न हो। आदमी को उसके बुरे कर्मों या पापों की सजा तो स्वत: ही प्रकृति दे देती है।
ऐसे विश्वासी मानते हैं कि परमेश्वर हमेशा हमारे साथ है। हम जितना विनम्र, निरंकारी और समझदार होंगे वह उतना करीब होगा। हम जितना धार्मिक होंगे, वह हमारे उतना करीब होगा। हम जितने सकारात्मक और प्रार्थना से भरे होंगे वह उतना ही हमारे साथ होगा। हमारी सोच और हमारे भाव से ही हमारा जीवन सही दशा और दिशा में गमन करेगा। यही परम सत्य है। जैसा उपर वैसा नीचे। जैेसा भीतर वैसा बाहर।