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हिन्दू धर्म : जीवन से जुड़े पांच रहस्य...

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हमें फॉलो करें हिन्दू धर्म : जीवन से जुड़े पांच रहस्य...

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

हिन्दू धर्म में ऐसी हजारों बातों का उल्लेख है जिनको जानकर जीवन में चल रहे संकट, असफलता, अलगाव, भ्रम, भटकाव, अस्वस्थता आदि तरह के संघर्षों से बचा जा सकता है। आधुनिक मानव का जीवन संबंधों के बिखराव, धन के अभाव, रोग और शोक का जाल या फिर अनावश्यक अशांति के जाल में फंसा हुआ है। कभी-कभी सबकुछ होने के बाद भी मानसिक और शारीरिक शांति नहीं मिलती। क्यों?
अगले पन्ने पर हम जानेंगे कुछ ऐसी बातों को जो हमारे जीवन से जुड़ी हुई है। इन बातों को माने या न माने, लेकिन इनका हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वैसे ऐसे कई रहस्य है लेकिन हम बता रहे हैं मात्र पांच रहस्य...
 
सबसे पहले जानिए पांचवां रहस्य..
 

सपने : हिन्दू धर्म में सपनों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सपने आपके जीवन का हाल बताते हैं और सपने आपका भविष्य भी बना सकते हैं। अच्छे सपने आने का अर्थ है कि आपका दिन अच्छा है और अच्छे विचार कर रहे हैं। सोचीए यदि आपका दिन खराब होगा तो रात कैसे अच्छी हो सकती है? सोच खराब होगी तो भावना कैसे अच्छी हो सकती है?
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ऐसे में वर्तमान के साथ भविष्य के अच्छे होने की कोई गारंटी नहीं। इसीलिए सपने अच्छे आएं इसकी चिंता करें। कोई इसकी चिंता नहीं करता, जो करता है वह नया भविष्य गढ़ लेता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में सपनों के बारे में और स्वप्न फल के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है। इसीलिए अपने सपनों को संभालें तो जीवन संभल जाएगा।
 
स्वप्नों के प्रकार :
* दृष्ट:- जो जाग्रत अवस्था में देखा गया हो उसे स्वप्न में देखना। 
* श्रुत:- सोने से पूर्व सुनी गई बातों को स्वप्न में देखना।  
* अनुभूत:- जो जागते हुए अनुभव किया हो उसे देखना।  
* प्रार्थित:- जाग्रत अवस्था में की गई प्रार्थना की इच्छा को स्वप्न में देखना। 
* दोषजन्य:- वात, पित्त, कफ आदि दूषित होने से पैदा होने वाले स्वप्न देखना।
* भाविक:- जो भविष्य में घटित होना है, उसे देखना।
 
उपर्युक्त सपनों में केवल भाविक ही विचारणीय होते हैं। लेकिन अन्य को स्वस्थ और सकारात्मक बनाने के लिए अन्न और विचारों को शुद्ध और पवित्र बनाना जरूरी होगा।
 
 
अगले पन्ने पर चौथा रहस्य...
 

पूर्णिमा और अमावस्या : मान्यता अनुसार कुछ खास दिनों में कुछ खास कार्य करने से बचना चाहिए। खास कार्य ही नहीं करना चाहिए बल्कि अपने व्यवहार को भी संयमित रखना चाहिए। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि तेरस, चौदस, पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, ग्यारस, चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण उक्त 8 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है, क्योंकि इन दिनों में देव और असुर सक्रिय रहते हैं। इसके अलावा सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के बाद भी सतर्क रहने की जरूरत है। सूर्यास्तक के बाद दिन अस्त तक के काल को महाकाल का समय कहा जाता है। सूर्योदय के पहले के काल को देवकाल कहा जाता है। उक्त काल में कभी भी नकारात्मक बोलना या सोचना नहीं चाहिए अन्यथा वैसे ही घटित होने लगता है।
 
 
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अमावस्या : अमावस्या को हो सके तो यात्रा टालना चाहिए। किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं करना चाहिए। इस दिन रा‍क्षसी प्रवृत्ति की आत्माएं सक्रिय रहती हैं। यह प्रेत और पितरों का दिन माना गया है। इस दिन बुरी आत्माएं भी सक्रिय रहती हैं, जो आपको किसी भी प्रकार से ‍जाने-अनजाने नुकसान पहुंचा सकती है। इस दिन शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
 
पूर्णिमा : पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। हालांकि पूर्णिमा की रात में चांद की रोशनी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। पूर्णिमा की रात में कुछ देर चांदनी में बैठने से मन को शांति मिलती है। कुछ देर चांद को देखने से आंखों को ठंडक मिलती है और साथ ही रोशनी भी बढ़ती है। इस दिन नकारात्मक विचार, बुरे वचन, शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
 
अगले पन्ने पर तीसरा रहस्य...
 

शरीर का रखें ध्यान : शरीर को दूषित अन्न, वायु और जल से बचाना जरूरी है। शरीर रोगग्रस्त या कमजोर है तो फिर मन और जीवन भी ऐसा ही होगा। अयुर्वेदानुसार पहला सुख निरोगी काया। इसके लिए हिन्दू धर्म में रस, व्रत, आसन और प्राणायम के महत्व को बताया गया है। अन्न के कई प्रकार बताएं गए हैं लेकिन अन्न से श्रेष्ठ है रसों का सेवन करना।
 
 
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भोजन मानव को निरोगी भी रखता है और रोगी भी रखता है इसीलिए हिन्दू धर्म में योग और आयुर्वेद के नियमों पर चलने के धार्मिक नियम बनाए गए हैं। सेहत से जुड़े सभी तत्वों को हमारे ऋषियों ने धर्म के नियमों से जोड़ दिया है। उन्होंने जहां उपवास के महत्व को बताया वहीं उन्होंने यह भी बताया कि किस माह में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, किस वार को क्या न खाएं और किस नक्षत्र में क्या खाना सबसे उत्तम माना गया है।
 
अगले पन्ने पर दूसरा रहस्य...
 

मन : मनुष्य का मन अनंत शक्तियों का स्वामी है। मनुष्य मनुष्य इसलिए है क्योंकि उसके भीतर मन सक्रिय है, जबकि पशु और पक्षियों में मन की सक्रियता नहीं रहती है उनमें प्राणवायु की सक्रियता ज्यादा रहती है। प्राणवायु से क्रोध, बैचेनी, द्वैष, प्रतिद्वंतिता, कामुकता, संशय, प्रमाद, लालच आदि जैसी भावनाएं पैदा होती हैं। पशु और पक्षियों में इसीलिए विचार करने की क्षमता नहीं होती और वे अपनी इंद्रियों के वश में रहकर भावनाओं पर आधारित जीवन जिते हैं।

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मनुष्य में मन के ज्यादा सक्रिय होने से उसमें एक तत्व विचार अधिक होता है जिससे तर्क और बुद्धि का जन्म होता है। लेकिन अधिकतर मनुष्य अपने मन को दूषित कर उसको 'प्राणपन मन' बना लेते हैं। मन दूषित होता है अशुद्ध अन्न, अशुद्ध कर्म और अशुद्ध वचन से।
 
आयुर्वेद अनुसार आपके रोग और शोक का निर्माण पहले मन में होता है तब उसके शरीर पर लक्षण दिखाई देने शुरु होते हैं। अच्छा सोचे और अच्छा बोलने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। कर्म का चक्र छोटा है लेकिन भाग्य का चक्र बड़ा। जब तक कर्म के छोटे छोटे चक्र नहीं चलेंगे तब तक भाग्य का बड़ा चक्र नहीं घुमेगा।
 
पांच कर्मेन्द्रियों के बारे में हिन्दु धर्म में विस्तार से लिखा गया है। उक्त पांचों कर्मेन्द्रियों को पवित्र और स्वस्थ बनाए रखना जरूरी है अन्यथा इससे कर्मबंध बनता है जिसके चलते सुंदर और खुशहाल भविष्य पर प्रभाव पड़ता है। ये पांच कर्मेन्द्रियां हैं:-
 
1.हाथ:-किसी भी काम या कोई प्रतिकार के लिए ऊपयोग होता है।
2.पैर:-चलने या दौड़ने के लिए उपयोग होता है।
3.वाणी:-एक दुसरे तक बात पहुंचाने के लिए। संवाद कायम करने के लिए।
4.गुदाद्वार:-शरीर का मल/ कचरा निकलने के लिए।
5.उपस्थ (जननेन्द्रिय):-
 
हाथ:- हाथों का उपयोग आप गलत कार्यों के लिए भी कर सकते हैं। अच्छा करेंगे तो अच्छा होगा। हाथों को जीवन में उपयोग ही नहीं है बल्कि कहते हैं कि सबसे अच्छे हाथ प्रार्थना के होते हैं।
पैर:- पैरों को सुंदर और स्वस्थ बनाए रखना जरूरी है क्योंकि हमारे जीवन में सबसे कर्मठ पैरों को ही माना गया है।
 
वाणी या वचन के चार प्रकार : परावाणी (देव वचन), पश्यंति वाणी (हृदय से निकले वचन), मध्यमा वाणी (विचारपूर्वक बोले गए वचन), बैखारी वाणी (बगैर सोचे-समझे बोले गए वचन)। बोलने से ही सत्य और असत्य होता है। अच्छे वचन बोलने से अच्छा होता है और बुरे वचन बोलने से बुरा, ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं।
गुदाद्वार:- ऐसा अन्य खाएं और पीएं कि वह अमृत के समान फल दे।
उपस्थ : इसका सदुपयोग और सम्यक उपयोग जरूरी है।
 
मन के भी तीन प्रकार हैं: चेतन मन, अवचेतन मन और अचेतन मन। हम पांचों इंद्रियों से जो भी कहते हैं उसका मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बार बार किए जाने वाला कर्म अवचेतन और अचेतन मन का हिस्सा बन जाता है। हमारा मन धारणाओं, विचारों और आदतों का एक कुंड है। यह कुंड जितना खाली रहेगा ‍जीवन उतना सुंदर रहेगा।
 
मन की शक्ति का सदुपयोग सकारात्मक विचारों में निहित है। सूर्य दिन में उगता है रात में नहीं। उसी प्रकार रात में मन सोता है और दिन में जगता है। मन अपने दायरे को छोड़कर कहीं भागता नहीं। उसका दायरा शरीर व मस्तिष्क ही है। हमें भ्रम है कि दुनिया के कोने-कोने में ये जाता है। मन विचारों को पैदा करके स्वयं उसी से डरता है। किसी भी कल्पना से यदि कल्पना करने वाले को दुख पहुंचता है तो वह कल्पना हमारे स्वभाव के लिए उचित नहीं है।
 
अगले पन्ने पर पहला रहस्य...
 

ध्यान और मौन : मौन तपस्या और ध्यान का ही एक रूप है। ध्यान से हर तरह की समस्याओं का समाधान हो जाता है। ध्यान से जहां मन को साधा जाता है। मन के सधने से तन स्वस्थ्य होने लगता है। तन और मन के स्वस्थ्‍य और आनंददायक बनने से भविष्‍य उज्जवल बनता है। सभी तरह के रोग और शोक मिट जाते हैं।
 
 
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Meditation
ओशो कहते हैं, 'भीतर से जाग जाना ध्यान है। सदा निर्विचार की दशा में रहना ही ध्यान है।'  बहुत से लोग क्रियाओं को ध्यान समझने की भूल करते हैं- जैसे सुदर्शन क्रिया, भावातीत ध्यान,‍ विपश्यना और सहज योग ध्यान आदि। बहुत से संत, गुरु या महात्मा ध्यान की तरह-तरह की क्रांतिकारी विधियां बताते हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते हैं कि विधि और ध्यान में फर्क है। क्रिया और ध्यान में फर्क है। क्रिया तो साधन है साध्य नहीं। क्रिया तो ओजार है। क्रिया तो झाड़ू की तरह है।
 
आंख बंद करके बैठ जाना भी ध्यान नहीं है। किसी मूर्ति का स्मरण करना भी ध्यान नहीं है। माला जपना भी ध्यान नहीं है। अक्सर यह कहा जाता है कि पांच मिनट के लिए ईश्वर का ध्यान करो- यह भी ध्यान नहीं, स्मरण है। ध्यान है क्रियाओं से मुक्ति। विचारों से मुक्ति। साक्षी भाव में स्थित हो जाना। ध्यान की शुरुआत में विचारों पर ध्यान दे कि वे कितनी देर तक आपको परेशान करते हैं अच्छे हैं या बुरे? क्या आप बगैर विचारों के आंख बंद करके पांच मिनट तक बैठ सकते हैं? यदि आप ऐसा करने में सक्षम हो गए हैं तो आपके जीवन में क्रांति हो जाएगी। यही है हिन्दू धर्म का सबसे प्रथर्म रहस्य की जाग्रत हो जाना। अभ्यास से आप जाग्रत हो सकते हैं। क्या होगा जाग्रत होने से? रोग और शोक मिट जाएगा। ऐसा होने से ही संसार या संन्यास में लाभ मिलेगा।

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