ब्रह्म ही सत्य है। 'एकं एवं अद्वितीय' अर्थात वह एक है और दूसरे की साझेदारी के बिना है- यह 'ब्रह्मसूत्र' कहता है। वेद, उपनिषद और गीता ब्रह्मसूत्र पर कायम है। ब्रह्मसूत्र का अर्थ वेद का अकाट्य वाक्य, ब्रह्म वाक्य। ब्रह्मा को आजकल ईश्वर, परमेश्वर या परमात्मा कहा जाता है। इसका संबंध ब्रह्मा नामक देवता से नहीं है।
'एकं ब्रह्म द्वितीय नास्ति नेह ना नास्ति किंचन' अर्थात एक ही ईश्वर है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है- अंशभर भी नहीं है। उस ईश्वर को छोड़कर जो अन्य की प्रार्थना, मंत्र और पूजा करता है वह अनार्य है, नास्तिक है या धर्म विरोधी है।
तो क्या ये सब कार्य वेद विरूद्ध हैं?
*वह जो एक ब्रह्म को छोड़कर तरह-तरह के देवी-देवताओं की प्रार्थना करता है। एक देवता को छोड़कर दूसरे देवता को पूजता रहता है। अर्थात एक को छोड़कर अनेक में भटकने वाले लोग।
*वह जो मूर्ति या समाधि के सामने हाथ जोड़े खड़ा है।
*वह जो नक्षत्र तथा ज्योतिष विद्या में विश्वास रखने वाला है।
*वह जो सितारों और अग्नि की पूजा करने वाला है।
*वह जो सुअर, गाय, कुत्ते, कव्वे और सांप का मांस खाने वाला है।
*वह जो एक धर्म से निकलकर दूसरे धर्म में जाने वाली विचारधारा का है।
*वह जो शराबी, जुआरी और झूठ वचन बोलकर खुद को और दूसरों को गफलत में रखने वाला है।
*खुद के कुल, धर्म और परिवार को छोड़, दूसरों से आकर्षित होने वाले और झुकने वाले।
*नास्तिकों के साथ नास्तिक और आस्तिकों के साथ छद्म आस्तिक बनकर रहने वाले।
*वेदों की बुराई करने वाले और वेद विरुद्ध आचरण करने वाले।
*वह जो जातियों में खुद को विभाजित रखता है और अपने ही लोगों को नीचा या ऊंचा समझता है।
*वह जो वेद और धर्म पर बहस करता है और उनकी निंदा करता है।
*वह जो नग्न रहकर साधना करता है और नग्न रहकर ही मंदिर की परिक्रमा लगाता है।
*वह जो रात्रि के कर्मकांड करता है और भूत या पितरों की पूजा-साधना करता है।