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भव्य मंदिरों के लिए मशहूर उड़ीसा

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भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के तट पर फैला यह राज्य उसकी राजधानी भुवनेश्वर, चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी तथा कोणार्क के सूर्य मंदिर तथा शास्त्रीय मंदिर-नृत्य ओडिसी के लिए प्रसिद्ध है। मुख्य रूप से ग्रामीण स्वरूप वाला यह राज्य दस्तकारी तथा 'पिपली' हथकरघा वस्त्रों, पटचित्रों (वॉल हैंगिंग) तथा रजत-आभूषणों के लिए मशहूर है।

भुवनेश्वर
कटक से उड़ीसा की राजधानी का यहाँ आगमन तो यद्यपि 1950 में ही हुआ तथापि भुवनेश्वर का इतिहास 2000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। प्राचीन कलिंग राजाओं की राजधानी रहा भुवनेश्वर उसके उड़ीसा शैली के भव्य मंदिरों और गिरजों के लिए जाना जाता है।

प्रमुख आकर्षण
लिंगराज मंदिर- तीनों भुवनों के स्वामी भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप तो 1090-1104 में बना किंतु उसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार है तथा कलश की ऊँचाई 40 मीटर है। प्रतिवर्ष अप्रैल महीने में यहाँ रथयात्रा आयोजित होती है।

मंदिर के निकट ही स्थित बिंदुसागर सरोवर में भारत के प्रत्येक झरने तथा तालाब का जल संग्रहित है और उसमें स्नान से पापमोचन होता है। भुवनेश्वर-पुरी मार्ग पर उक्त मंदिर के निकट ही 20 छोटे-बड़े मंदिरों के समूह में प्रमुख है 650 ई. में बना परशुरामेश्वर मंदिर। इसी मार्ग पर अन्य प्रमुख हैं मुक्तेश्वर, सिद्धेश्वर, केदारगौरी तथा राजरानी के मंदिर।

भुवनेश्वर के आसपास के दर्शनीय स्थल हैं, उदयगिरि- खंडगिरि की गुफाएँ।

भुवनेश्वर के लिए विमान सेवा : दिल्ली से प्रतिदिन, कोलकाता से सप्ताह में पाँच तथा चेन्नई, नागपुर तथा हैदराबाद से भी दो-तीन उड़ानें उपलब्ध। कोलकाता के लिए मुख्य राजमार्ग पर स्थित बस अड्डे से बसें राज्य के पुरी, कटक तथा कोणार्क सहित सभी नगरों के लिए चलती हैं। भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन कोलकाता-चेन्नई मुख्य मार्ग पर स्थित है। राजधानी एक्सप्रेस मात्र सात घंटे में कोलकाता पहुँचाती है।

पुरी
भुवनेश्वर से 60 कि.मी. दूर समुद्र तट पर बसा पुरी हिंदुओं के चार धामों में से एक पवित्र तीर्थ तो है ही, यहाँ का समुद्र-तट सभी तरह के सैलानियों को आकर्षित करता है। यह भी माना जाता है कि भगवान बुद्ध का पवित्र अवशेष (दाँत) अंततः श्रीलंका ले जाए जाने के पूर्व यहीं छुपाकर रखा गया था।

जगन्नाथ मंदिर एवं रथयात्रा उत्सव : ई. 1198 में निर्मित इस भव्य मंदिर के चार सिंह द्वारों पर सुन्दर प्रस्तर आकृतियाँ स्थापित हैं। गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ (कृष्ण) और उनके भ्राता बलभद्र तथा बहन सुभद्रा की प्रतिमाएँ बनी हुई हैं जिनका विभिन्न अवसरों पर श्रद्धा के साथ श्रृंगार किया जाता है। मंदिर परिसर की देखभाल और आराधना-अर्चना के लिए 6000 कर्मचारी नियुक्त हैं।

समुद्र तट विस्तीर्ण है किंतु वहाँ आसपास हरे-भरे वृक्ष नहीं हैं। श्रद्धालुजन यहाँ स्नान कर कृतकृत्य होते हैं।

पुरी रेलवे स्टेशन के लिए कलकत्ता, भुवनेश्वर और दिल्ली से नियमित रेलगाड़ियाँ हैं किंतु कोणार्क आदि के लिए बस सेवा ज्यादा त्वरित है।

कोणार्क
कोणार्क का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर समुद्र तट से तीन किलोमीटर तथा पुरी और भुवनेश्वर से क्रमशः 36 और 64 कि.मी. के फासले पर है। मान्यतानुसार इस मंदिर का निर्माण उड़ीसा के महाराजा नृसिंहदेव प्रथम ने 13वीं सदी के मध्य मुस्लिम आक्रामकों पर प्राप्त विजय के उपलक्ष्य में किया था।

सूर्य की आकृति में बना यह विशाल मंदिर चौबीस पत्थर के पहियों पर स्थापित है और इस रथ को सात विशाल अश्व खींच रहे हैं। समूचे ढाँचे पर सुन्दर आकृतियाँ और प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की हुई हैं। परिसर का एक भव्य आकर्षण वह नव-ग्रह मंदिर भी हैं जहाँ प्रस्तर खंड पर सूर्य सहित अन्य ग्रहों- चन्द्र, मंगल,बुध, बृहस्पति, शनि, शुक्र, तथा राहू-केतू की पद्मासन मुद्रा में प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। कोणार्क के लिए पुरी और भुवनेश्वर से नियमित बसें चलती हैं।

गोपालपुर-ऑन-सी : बहरामपुर से 18 कि.मी. द़िक्षण पूर्व में स्वच्छ सुंदर 'बीच' एवं सैलानी ठिकाना।

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