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महिलाओं की वियाग्रा, क्या होगा असर...

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, शुक्रवार, 10 मई 2013 (01:00 IST)
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वॉशिंगटन। बड़ी फार्मा कंपनी के अंदर और बाहर प्रचार अपने चरम पर है और दावा किया जा रहा है कि महिलाओं के सेक्सुअल डिस्फंक्शन (मेनोपॉज) का इलाज करने के लिए एक गोली बाजार में आने वाली है। हाल ही में, अमेरिका के फेडरल ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने इसे ऑस्फेना के नाम से स्वीकृति दी है।

दवा बनाने वाली कंपनी शियोनोगी इन्कॉ. का दावा है कि अमेरिका की 6 करोड़ 40 लाख महिलाओं में से आधी महिलाएं इसका इस्तेमाल कर सकती हैं। भले ही ये महिलाएं मेनोपॉज की उम्र तक पहुंच गई हैं। कंपनी का दावा है कि इस दवा को लेकर महिलाएं बहुत अच्छे सेक्स का आनंद ले सकती हैं।

अगर महिलाओं का एक छोटा-सा हिस्सा ही इस दवा का परीक्षण करता है तो यह स्थिति दवा कंपनी का भाग्य बदल सकती है। हालांकि महिलाओं के लिए बनी इस तरह की दवाएं असफल ही साबित हुई हैं। इसके साथ ही, ऐसी दवाएं एफडीए को भी संतु‍ष्ट नहीं कर सकीं। इसलिए कोई नई बात नहीं है कि इस तरह की गोली को लेकर दवा निर्माता क्षेत्र से जुड़े लोग ही आशंकाएं जता रहे हैं।

 

क्या यह दवाई सफल होगी... आगे...


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पर क्लीवलैंड की महिला रोग विज्ञानी मार्जरी गास का कहना है कि ओसेफीना महिलाओं की मेनोपॉज थेरेपीज में मील का पत्थर साबित होगी। वे साउथ अमेरिकन मेनोपॉज सोसायटी की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी हैं। एफडीए ने ओसेफीना (जो कि संभवत: ऑस्पेमीफेन के नाम से होगी) को जून में बाजार में उतारने की अनुमति दे दी है और शियोनोजी ने जन सामान्य के लिए प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया है, लेकिन इसके साथ ही डॉक्टरों और दवा निर्माताओं ने इसको लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

डॉक्टरों का कहना है कि क्या मेनोपॉज वास्तव में एक बीमारी है, जिससे काफी बड़ी संख्‍या में महिलाएं प्रभावित हैं या फिर यह एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है जिस पर किसी दवाई का असर नहीं होता है। दूसरा सवाल है कि ओसेफीना को वास्तव में अनुमति कैसे मिली? तीसरी बात है कि यह काफी हद तक एस्ट्रोजन से मिलती-जुलती है तो इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह 'हारमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी' तो नहीं है जो कि पहले भी असफल हो चुकी है।

जबकि मेनोपॉज वास्तव में ऐसी ही 'बीमारी' या स्वाभाविक प्रक्रिया है जैसे कि ‍कैशोर्य। उल्लेखनीय है कि साठ के दशक तक इसे समस्या नहीं समझा जाता था। तब दवा कंपनियों-वाइथ-आईरेस्ट, उपजॉन और सर्ल ने इसे एस्ट्रोजन की कमी की ‍गड़बड़ी बताया। 1966 में दवा उद्योग के पैसों से निकलने वाली पत्रिकाओं ने इसे 'एक दुखांत' घटना या 'जीवित अवस्था का क्षय' बताया।

...तो महिलाओं के स्त्रीत्व की मौत... आगे....


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कहा गया कि अगर महिला में एस्ट्रोजन नष्ट हो जाता है तो समझिए कि उनके 'स्त्रीत्व' की मौत हो गई। इस तरह हारमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी प्रचलन में आई।

वाइथ ने एक टू ड्रग पिल 'प्रेम्प्रो' बनाई और कथित विशेषज्ञों ने मेडिकल लेखों में इस दवा के अनगिनत फायदे बता दिए और 2001 जब अपने चरम पर थी तब तक मेनोपॉजल हारमोन्स का बाजार 2 बिलियन डॉलर का बन चुका था। जब मेनोपॉज की दवाओं का बाजार अपने चरम पर था तभी पुरुषों की बढ़ती उम्र और सेक्स पॉवर को ठीक कर देने वाली गोली वियाग्रा बाजार में आ गई।

मेडीकल पत्रकार रे मॉयनिहान का कहना है कि मेनोपॉजल हॉरमोन्स के लिए जो भी शोध किए गए वे पूरी तरह तर्कसंगत और वास्तविक नहीं कहे जा सकते हैं। दवा के बाजार में आने से पहले मात्र 1500 महिलाओं का सर्वे किया गया था। जिसमें सवालों के जवाब हां या नहीं में थे लेकिन इन जवाबों के संदर्भ में जीवन की वास्तविक स्थितियों पर कोई ध्‍यान नहीं दिया गया था। इसलिए उम्मीद की जाती है कि जून में जब ऑस्फेना बाजार में आए तो यह मात्र एक हारमोनल इलाज न होकर समस्या को दूर करने की 'असली दवा' साबित हो।

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