वैज्ञानिकों का कहना है कि वियाग्रा के स्थान पर रैडिकल (मौलिक) थैरपी को अपनाकर वियाग्रा के स्थान पर नपुंसकता का स्थायी इलाज किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि नीली रोशनी के साथ प्रतिक्रिया करने वाले एक जीन कंसट्रक्ट को लिंग में इंजेक्ट किया जा सकता है। स्विस वैज्ञानिकों की इस चिकित्सा में लिंग में कृत्रिम डीएनए को इंजेक्ट कराया जाता है।
डेली मेल में एली जोल्फागरीफार्ड का कहना है कि नपुंसकता से प्रभावित लोगों को खुद को नीली रोशनी के सामने खोलकर रखना होगा। जब इलाज किए गए टिशू को नीली रोशनी के सामने रखा जाता है तो जीन कंस्ट्रक्ट लिंग में रक्त प्रवाह को बढ़ा देता है जिससे लिंग में यौन उत्तेजना पैदा होती है। विदित हो कि यह इलाज अभी तक चूहों पर सफल रहा है और इसका मनुष्यों पर परीक्षण किया जा रहा है।
इटीएच ज्यूरिख के शोधकर्ता प्रोफेसर मार्टिन फसेनेगर के नेतृत्व में सक्रिय हैं। उनका कहना है कि जब टिशू को रोशनी के सामने रखा जाता है तो एक प्रीकर्सर मॉलिक्यूल (अग्रगामी अणु या कण) जिसे गुआनोसाइन ट्राइफॉस्फेट या जीटीपी के नाम से जाना जाता है, एक दूसरे मैसेंजर या संदेशवाहक सीजीएमपी में बदल जाता है। इसके सक्रिय होने कैल्शियम के चैनल्स बंद हो जाते हैं और इससे कोशिकाओं में कैल्शियम का स्तर कम हो जाता है।
यह मसल्स सेल्स को रिलेक्स होने में मदद करता है और इरेक्टाइल (स्तंभन) टिशूज में रक्त प्रवाह को बढ़ा देता है। इससे लिंग कड़ा हो जाता है और एन्जाइम्स धीरे-धीरे सीजीएमपी में टूटने लगते हैं। इस कारण से इरेक्शन धीरे-धीरे कम हो जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब ट्रीटेड टिशूज को नीली रोशनी के सामने रखा जाता है तो जीन कंस्ट्रक्ट रक्त प्रवाह को बढ़ा देता है और यह बिना किसी यौन उत्तेजना के संभव होता है। यह वियाग्रा की तुलना में इस लिहाज से श्रेष्ठ है कि नीली गोली से केवल इरेक्शन के समय को बढ़ाया जाता है, लेकिन इस इलाज से यौन उत्तेजना को शुरू भी किया जा सकता है और बाद में इसे समाप्त भी किया जा सकता है।