इस वर्ष शनि जयंती पर अद्भुत संयोग बनने जा रहा है। इस बार शनि जयंती "कालसर्प दोष" के गोचर में मनाई जाएगी। इस वर्ष शनि जयंती 22 मई को है। इस दिन गोचरवश सभी ग्रह राहु-केतु की परिधि के अन्दर हैं, जिसे ज्योतिष शास्त्र में "कालसर्प-दोष" कहा जाता है।
कालसर्प दोष ज्योतिष के "कर्तरी दोष" का ही विस्तारित स्वरूप है। वहीं शनि जयंती के दिन गुरु अपनी नीच राशि मकर में शनि के साथ युतिकारक है। नैसर्गिक भोगविलास के कारक शुक्र भी सूर्य के साथ युतिकारक होकर अस्त हैं।
शनि-जयंती पर ये अद्भुत ग्रह स्थितियां व संयोग कई वर्षों के बाद निर्मित हुए हैं। इन विपरीत ग्रह स्थितियों के प्रभाव से देश में प्रतिकूल स्थितियां निर्मित होंगी। महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं के कारण जनहानि होगी।
शनि प्रधान उद्योग धन्धों जैसे खनिज, कृषि, लौह धातु, पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्य तेल के दामों में वृद्धि होगी। शनि को ज्योतिष में न्यायाधिपति के साथ-साथ सेवा का कारक माना गया है। जिसके चलते सेवा कार्य से जुड़े व्यक्तियों जैसे मजदूर वर्ग, नौकरीपेशा आदि को आजीविका के संकट का सामना करना पड़ेगा। पेट्रोलियम पदार्थों का व्यवसाय करने वाले देशों को पेट्रो पदार्थों से हानि होगी।
ज्योतिष में शनि की भूमिका
ज्योतिष शास्त्र में शनि की अहम् भूमिका है। नवग्रहों में शनि को न्यायाधिपति माना गया है। ज्योतिष फ़लकथन में शनि की स्थिति व दृष्टि बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। किसी भी जातक की जन्मपत्रिका का परीक्षण कर उसके भविष्य के बारे में संकेत करने के लिए जन्मपत्रिका में शनि के प्रभाव का आकलन करना अति-आवश्यक है।
शनि स्वभाव से क्रूर व अलगाववादी ग्रह हैं। जब ये जन्मपत्रिका में किसी अशुभ भाव के स्वामी बनकर किसी शुभ भाव में स्थित होते हैं तब जातक के अशुभ फ़ल में अतीव वृद्धि कर देते हैं।
शनि मन्द गति से चलने वाले ग्रह हैं। शनि एक राशि ढाई वर्ष तक रहते हैं। शनि की तीन दृष्टियां होती हैं- तृतीय, सप्तम, दशम। शनि जन्मपत्रिका में जिस भाव में स्थित होते हैं वहाँ से तीसरे, सातवें और दसवें भाव पर अपना दृष्टि प्रभाव रखते हैं।
शनि की दृष्टि अत्यन्त क्रूर मानी गई है अत: शनि जिस भी भाव या ग्रह पर अपनी दृष्टि डालते हैं उसकी हानि करते हैं। शनि कार्यों में विलम्ब का प्रमुख कारण होते हैं। उदाहरणार्थ यदि शनि की दृष्टि सप्तम भाव या सप्तमेश पर पड़ रही है तो ऐसी स्थिति में शनि के कारण जातक का विवाह बहुत विलम्ब से होता है।
शनि एक क्रूर ग्रह है अत: शनि के प्रभाव वाला जातक क्रूर स्वभाव वाला होता है। शनि का रंग काला है जिसके फ़लस्वरूप शनि के प्रभाव वाले जातकों का रंग भी सावला या काला होता है। शनि; सूर्य के पुत्र हैं किन्तु उनके नैसर्गिक शत्रु भी हैं अत: सिंह राशि व सिंह लग्न वाले जातकों के लिए शनि अक्सर अशुभ फ़लदायक ही होते हैं।
शनि के प्रभाव वाली स्त्रियां क्रूर, क्रोधी व जिद्दी स्वभाव वाली होती हैं। शनि जिस भाव पर प्रभाव डालते हैं उससे जातक का अलगाव कर देते हैं जैसे सप्तम भाव पर प्रभाव से जीवनसाथी से, दशम भाव पर प्रभाव से आजीविका से, द्वितीय भाव पर प्रभाव से घर-परिवार; प्रारम्भिक शिक्षा से, पँचम भाव पर प्रभाव से प्रेमी-प्रेमिका; उच्चशिक्षा आदि से दूर करते हैं। शनि आयु के नैसर्गिक कारक हैं, अष्टमस्थ शनि दीर्घायुदायक होते हैं।
शनि के जन्मपत्रिका में बलवान एवं शुभ होने से सत्ता और सेवक का सुख प्राप्त होता है। कुण्डली में शनि के शुभ व अनुकूल होने पर खनन, लौह, तेल, कृषि, वाहन आदि से जातक को लाभ होता है। ज्योतिष अनुसार शनि दु:ख के स्वामी भी है अत: शनि के शुभ होने पर व्यक्ति सुखी और अशुभ होने पर सदैव दु:खी व चिन्तित रहता है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र