हिन्दू परंपरा में भगवान शनिदेव की पूजा का प्रचलन है। शनिदेव के संबंध में हमें पुराणों में कई कथाएं और कहानियां मिलती है। थोड़ी बहुत भिन्नता के साथ ही लगभग सभी कथाओं में समानताएं हैं। इस बार शनि जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या अर्थात 10 जून 2021 गुरुवार को है। आओ जानते हैं भगवान शनिदेव के संबंध में 10 रोचक बातें।
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
1. शनिदेव का जन्म : एक कथा के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है। लेकिन स्कंदपुराण के काशीखंड अनुसार शनि भगवान के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं। शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था। हालांकि कुछेक ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को माना गया है।
2. संज्ञा की छाया के पुत्र : सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ और फिर संज्ञा ने ही सूर्यदेव के ताप से बचने के लिए संज्ञान ने अपने तप से अपना प्रतिरूप संवर्णा को पैदा किया और संज्ञा ने संवर्णा से कहा कि अब से मेरे बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिए। संज्ञा उसे सूर्यदेव के महल में छोड़कर चली गई। सूर्यदेव ने उसे ही संज्ञा समझा और सूर्यदेव और संवर्णा के संयोग से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।। संज्ञा का प्रतिरूप होंने के कारण संवर्णा का एक नाम छाया भी हुआ।
3. छाया के तप से शनिदेव हुए काले : कहते हैं कि जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव का कठोर तपस्या किया था। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानि शनिदेव पर भी पड़ा। फिर जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
4. पिता और पुत्र में हुआ मनमुटाव : मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी तब कहीं उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन इस घटना के चलते पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।
5. शनिदेव का स्वरूप : शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। कहीं-कहीं इन्हें कौवे या भैंसे पर सवार भी बताया गया है। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। इन्हें यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि नामों से जाना जाता है।
6.शनिदेव को पत्नी से मिला श्राप : ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया था। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
7. शनि की दृष्टी : कहते हैं कि शनिदेव की दृष्टी एक बार शिव पर पड़ी तो उनको बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा और एक बार तो उन्हें हाथी बनकर भी रहना पड़ा था। रावण पर पड़ी तो उनको भी असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। मात्र हनुमानजी ही एक ऐसे देवता हैं जिन पर शनि का कभी कोई असर नहीं होता और वे अपने भक्तों को भी उनके असर से बचा लेते हैं।
8. श्रीकृष्ण और शनिदेव : जनश्रुति कथा के अनुसार मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था तब स्वर्ग से सभी देवताओं के साथ शनिदेव भी कृष्ण के बाल रूप को देखने मथुरा आए थे। नंदबाबा को जब यह पता चला तो उन्होंने भयवश शनिदेव को दर्शन कराने से मना कर दिया। नन्द बाबा को लगा कि शनिदेव की दृष्टि पड़ते ही कहीं कृष्ण के साथ कुछ अमंगल न हो जाए। तब मानसिक रूप से शनिदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से दर्शन देने की विनती की तो कृष्ण ने शनिदेव को कहा कि वे नंदगांव के पास के वन में जाकर तपस्या करें, वहीं मैं उन्हें दर्शन दूंगा। बाद में शनिदेव की तपस्या से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और कोयल के रूप में उन्होंने शनिदेव को दर्शन दिया।
9. हनुमान भक्त पर शनिदेव की कृपा : एक बार रामजप में बाधा डालने के बारण शनिदेव को हनुमानजी ने अपनी पूंछ में लपेट लिया था और अपना रामकार्य करने लग गए थे। इस दौरान शनिदेव को कई चोटे आई। बाद में जब हनुमानजी को याद आया तो उन्होंने शनिदेव को मुक्त किया। तब शनिदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने कहा कि आज के बाद में रामकार्य और आपके भक्तों के कार्य में कोई बाधा नहीं डालूंगा। एक बार हनुनामजनी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराया था तब शनि भगवान ने वचन दिया था कि मैं आपके किसी भी भक्त पर कभी भी बुरी दृष्टि नहीं डालूंगा और उन पर कृपा बनाए रखूंगा।
10. शनिदेव के सिद्धपीठ : 1. शनि शिंगणापुर : महाराष्ट्र के शिंगणापुर में स्थित है शनिदेव का चमत्कारिक स्थान। कहते हैं कि यहीं पर शनिदेवजी का जन्म हुआ था। 2. शनिश्चरा मन्दिर : मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास स्थित है शनिश्चरा मन्दिर। इसके बारे में किंवदंती है कि यहाँ हनुमानजी के द्वारा लंका से फेंका हुआ अलौकिक शनिदेव का पिण्ड है। 3. सिद्ध शनिदेव : उत्तरप्रदेश के कोशी से छह किलोमीटर दूर कौकिला वन में स्थित है सिद्ध शनिदेव का मन्दिर। यहां शनिदेवजी कठोर तप करके श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त किए थे।