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शनि देव के जन्म स्थान शिंगणापुर के 6 रहस्य

हमें फॉलो करें शनि देव के जन्म स्थान शिंगणापुर के 6 रहस्य

अनिरुद्ध जोशी

वैसे जो भारतभर में शनिदेव के कई पीठ है किंतु तीन ही प्राचीन और चमत्कारिक पीठ है, जिनका बहुत महत्व है। शनि शिंगणापुर (महाराष्ट्र), शनिश्चरा मन्दिर (ग्वालियर मध्यप्रदेश), सिद्ध शनिदेव (कशीवन, उत्तर प्रदेश)। इनमें से शनि शिंगणापुर को भगवान शनिदेव का जन्म स्थान माना जाता है। जनश्रुति है कि उक्त स्थान पर जाकर ही लोग शनि के दंड से बच सकते हैं, किसी अन्य स्थान पर नहीं। जनश्रुति और मान्यता अनुसार यह शनि देव का जन्म स्थान है।
 
1. गांव में नहीं होती चोरी : शिंगणापुर गांव में शनिदेव का अद्‍भुत चमत्कार है। इस गांव के बारे में कहा जाता है कि यहां रहने वाले लोग अपने घरों में ताला नहीं लगाते हैं और आज तक के इतिहास में यहां किसी ने चोरी नहीं की है।
 
ऐसी मान्यता है कि बाहरी या स्थानीय लोगों ने यदि यहां किसी के भी घर से चोरी करने का प्रयास किया तो वह गांव की सीमा से पार नहीं जा पाता है उससे पूर्व ही शनिदेव का प्रकोप उस पर हावी हो जाता है। उक्त चोर को अपनी चोरी कबूल भी करना पड़ती है और शनि भगवान के समक्ष उसे माफी भी मांगना होती है अन्यथा उसका जीवन नर्क बन जाता है।
 
2. छाया पुत्र को नहीं जरूरत छाया की : यहां शनि देव मूर्ति रूप में नहीं एक काले लंबे पत्थर के रूप में विराज मान हैं, लेकिन यहां उनका को मंदिर नहीं है। न उनके उपर कोई छत्र है। शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊंची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहां शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आंधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। वृक्ष है लेकिन छाया नहीं।
 
3. हर शनि अमावस्या पर होता है विशेष पूजन : शनिवार के दिन आने वाली अमावस को तथा प्रत्येक शनिवार को यहां शनि भगवान की विशेष पूजा और अभिषेक होता है। प्रतिदिनप्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहां आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर 'लघुरुद्राभिषेक' कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।
 
4. मामा भांजे साथ मिलकर करते हैं दर्शन तो लाभ : जनश्रुति के अनुसार एक बार शिंगणापुर में बाढ़ आई। सबकछ बह गया। तभी एक आदमी ने देखा की एक बड़ा और लंबा सा पत्थर झाड़ पर अटका हुआ है। उसने जैसे तैसे उस पत्थर को नीचे उतारा वह अद्भुत पत्‍थर था। उसने उस पत्थर को तोड़ने का प्रयास किया तो उसमें से खून निकलने लगा यह देखकर वह घबराकर वहां से भाग गया और गांव में जाकर उसने यह घटना बताई। यह सुनकर कई लोग उस पत्थर पास गए और उसे उठाने का प्रयास करने लगे लेकिन वह किसी से भी नहीं उठा। तब एक रात उसी आदमी को शनि देव ने स्वप्न में आकर कहा कि मैं उस पत्थर के रूप में साक्षात शनि हूं। मामा भांजे मिलकर मुझे उठाए तो उठ जाऊंगा। यह स्वप्न उस आदमी ने गांव वालों को सुनाया। तब गांव के ही एक मामा मांजे ने उस पत्थर को उठाकर ठाकर एक बड़े से मैदान में सूर्य की रोशनी के तले स्थापित कर दिया। तभी से यह मान्यता है कि इस मंदिर में यदि मामा-भांजा दर्शन करने जाएं तो अधिक फायदा होता है।
 
5. गडरिये को मिली थी शिला : एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार भगवान शनि देव के रूप में यह शिला एक गडरिये को मिली थी। स्वयं शनि देव ने उस गडरिये से कहा कि इस शिला के लिए बिना कोई मंदिर बनाए इसे खुले स्थान स्थापित करें और इस शिला पर तेल का अभिषेक शुरू करें। तब से ही यहां एक चबूतरे पर शनि के पूजन और तेल अभिषेक की परंपरा जारी है।
 
6. पीछे मुड़कर ना देखें : जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि जो कोई भी शनि भगावन के दर्शन के लिए प्रांगण में प्रवेश करता है उसे तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए जब‍ तक की वह दर्शन करके पुन: बाहर न निकल जाए। यह वह ऐसा करता है तो उस पर शनि की कृपा दृष्टि नहीं होती है। उसका यहां आना निष्फल हो जाता है।

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