आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। कोजागिरी, कौमुदी और रास पूर्णिमा भी कहते हैं। आओ जानते हैं कि क्या महत्व है इस पूर्णिमा का।
1. ज्योतिष विद्वानों के अनुसार पूरे वर्ष में सिर्फ इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं का होता है और इससे निकलने वाली किरणें अमृत समान मानी जाती है। शरद पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन दिनों से सुबह और शाम को सर्दी का अहसास होने लगता है।
2. मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ने से यह कई गुना गुणकारी और लाभकारी हो जाती है। इसलिए इस दिन लोग दूध या खीर को चंद्रमा के प्रकाश में रखते हैं।
3. इस दिन कोजागर या कोजागिरी का व्रत रखने का महत्व भी है और इसी दिन कौमुदी व्रत भी रखा जाता है।
4. शरद पूर्णिमा से ही महत्वपूर्ण स्नान और अन्य तरह के व्रत आरंभ हो जाते हैं।
5. इस दिन माताएं अपनी संतान की मंगल कामना के लिए देवी-देवताओं का पूजन करती हैं।
6. शरद ऋतु में मौसम एकदम साफछक दिखाई देता है। इस समय में आकाश में न तो बादल होते हैं और नहीं धूल के गुबार।
7. इस दिन चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक आ जाता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। इस रात को चांद आम दिनों की अपेक्षा आकार में 14 फीसद बड़ा और चमकदार दिखाई देता है।
8. शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।
9. शरद पूर्णिमा का चांद नीला दिखाई देता है, इसलिए इसे ब्लू मून कहते हैं। कहते हैं कि नीला चांद वर्ष में एक बार ही दिखाई देता है। एक साल में 12 बार और एक शताब्दी में लगभग 41 बार ब्लू मून दिखता है जबकि हर तीन साल में 13 बार फूल मून होता है।
10. शरद पूर्णिमा के दौरान चातुर्मास लगा होता है जिसमें भगवान विष्णु सो रहे होते हैं। चातुर्मास का यह अंतिम चरण होता है