kojagari lakshmi puja 2025: कोजागरी व्रत क्या होता है, क्यों करते हैं लक्ष्मी पूजा?
, सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 (12:30 IST)
वर्ष 2025 में कोजागरी लक्ष्मी पूजा सोमवार, 6 अक्टूबर को मनाई जा रही है। विशेष रूप से यह पर्व बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। तथा बंगाल में इसे 'लक्ष्मी पूर्णिमा' के रूप में मनाया जाता है और महाराष्ट्र में इसे 'कोजागिरी पौर्णिमा' कहते हैं।
1. कोजागरी व्रत क्या होता है?: 'कोजागरी' शब्द संस्कृत के 'को जागरति?' से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'कौन जाग रहा है?' यह व्रत मुख्य रूप से धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और रात्रि में मां लक्ष्मी तथा चंद्रमा की विशेष पूजा करते हैं।
- रात्रि जागरण या जागरति: इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रात भर जागना/ जागरण है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और हर घर में जाकर पूछती हैं, 'को जागरति?' अर्थात् कौन जाग रहा है?।
2. इस दिन लक्ष्मी पूजा क्यों करते हैं?: शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी की पूजा करने के पीछे मुख्य रूप से दो प्रमुख कारण हैं:
1. मां लक्ष्मी का पृथ्वी पर भ्रमण अर्थात् धन और समृद्धि का आशीर्वाद पाने का दिन: इस व्रत की धार्मिक मूल मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को ही देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और उन लोगों को देखती हैं जो रात भर जागकर उनकी आराधना कर रहे हैं।
इस तरह जो भक्त इस रात श्रद्धापूर्वक मां को जागृत अवस्था में याद करते हैं, उनके घर में मां प्रवेश करती हैं और उन्हें आर्थिक संकटों से मुक्ति दिलाकर स्थायी धन और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। यही कारण है कि इस रात घर को स्वच्छ रखा जाता है और दीपक जलाए जाते हैं ताकि मां लक्ष्मी का स्वागत किया जा सके।
2. चंद्रमा और अमृत वर्षा का विशेष महत्व: पूरे वर्ष भर में यह एकमात्र ऐसी रात होती है जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणें अमृत के समान औषधीय गुणों से युक्त होती हैं। इस रात भक्त खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं, ताकि वह अमृत से युक्त हो जाए। मां लक्ष्मी, जिन्हें धन, स्वास्थ्य और पोषण की देवी माना जाता है, इस खीर के माध्यम से भक्तों को स्वास्थ्य और दीर्घायु का भी वरदान देती हैं।
पौराणिक कथा: एक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी का अवतरण भी इसी पूर्णिमा के आस-पास हुआ था, इसलिए यह तिथि उनकी पूजा के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है।
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