होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी मनाई जाती है जबकि कुछ लोग अष्टमी को पर्व मनाते हैं। शीतला सप्तमी के दिन ही बासी भोजन ग्रहण किया जाता है। उसके बाद से बासी भोजन नहीं खाया जाता है क्योंकि शीतला सप्तमी के बाद से ही मौसम गर्म होने लगता है। माता शीतला की पूजा विशेष रूप से बसंत और ग्रीष्म ऋतु में ही की जाती है। आइए जानें 10 बातें...
1. शीतला सप्तमी से एक दिन पहले ही यानी षष्ठी तिथि को मीठे चावल बना लें और उसके बाद पूजा की सभी समाग्री तैयार कर लें। जिसमें मीठे चावलों के साथ हल्दी और चने की दाल अवश्य होनी चाहिए।
2. इस दिन सुबह ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करके अंधेरे में जहां पर होली जलाई गई हो उस स्थान पर जाना चाहिए।
3. इसके बाद वहीं पर आटा गूंथकर दो आटें का दीपक बनाएं और उसमें घी की बाती डूबोकर लगाएं।
4. यह दीपक बिना जलाएं उस होली वाले स्थान पर रख दें और मीठे चावल, चने की दाल और हल्दी भी चढ़ाएं और उसके बाद जल चढ़ाएं।
5. इसके बाद मंदिर जाकर माता शीतला की पूजा करें। सबसे पहले माता शीतला को हल्दी और रोली का तिलक लगाएं।
6. माता शीतला का तिलक करने के बाद काजल, मेहंदी, लच्छा और वस्त्र अर्पित करें। तीन कंडवारे का समान अर्पित करें।
7. इसके बाद माता शीतला की कथा अवश्य पढ़ें या सुने।
8. कथा पढ़ने के बाद माता शीतला को भी मीठे चावलों का भोग लगाएं।
9. इसके बाद माता शीतला की आटें का दीपक जलाकर आरती उतारें।
10. आरती उतारने के बाद माता शीतला को जल अर्पित करें और उसकी कुछ बूंदे अपने ऊपर भी डालें।