शिवपुराण के अनुसार शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है। शिव की जो पराशक्ति है उससे चित् शक्ति प्रकट होती है। चित् शक्ति से आनंद शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, आनंद शक्ति से इच्छाशक्ति का उद्भव हुआ है, इच्छाशक्ति से ज्ञानशक्ति और ज्ञानशक्ति से पांचवीं क्रियाशक्ति प्रकट हुई है।
इन्हीं से निवृत्ति आदि कलाएं उत्पन्न हुई हैं। चित् शक्ति से नाद और आनंदशक्ति से बिंदु का प्राकट्य बताया गया है। क्रियाशक्ति से 'अ' कार की उत्पत्ति, ज्ञानशक्ति से पांचवां स्वर 'उ' कार व इच्छाशक्ति से 'म' कार प्रकट हुआ है। इस प्रकार प्रणव (ॐ) की उत्पत्ति हुई है।