Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
Friday, 18 April 2025
webdunia

शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का फर्क समझिए

Advertiesment
हमें फॉलो करें shivratri

अनिरुद्ध जोशी

कभी आपने यह नहीं सुना होगा कि होली या महाहोली, दीपावली या महादीवावली, नवरात्रि या महानवरात्रि। लेकिन आपने दो शब्द कैलेंडर में पढ़ें होंगे, एक शिवरात्रि और दूसरा महाशिवरात्रि। आखिर शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में फर्क क्या है? आओ संक्षिप्त में जानते हैं इस बारे में।
 
 
शिवरात्रि- भगावन शिव का सोमवार और प्रदोष दिन नियुक्त है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। इसे ही प्रदोष भी कहा जाता है। इसे मासिक शिवरात्रि भी कहते हैं। जब यही प्रदोष श्रावण माह में आता है तो वह बड़ी शिवरात्रि मानी जाती है। श्रावण मास की चतुर्दशी को शिवरात्रि भी धूम-धाम से मनाई जाती है।
 
 
महाशिवरात्रि- फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विशेष महत्व और विधान है। कहते हैं कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-
 
 
फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। 
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥
 
 
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। सूर्य देव इस समय पूर्णत: उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया है।
 
 
महाशिवरात्रि का महत्व-
शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं। माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।
 
 
प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

4 मार्च 2019 का राशिफल और उपाय...