Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

महाशिवरात्रि है शिव की महारात्रि, जानिए 9 रहस्य

Advertiesment
हमें फॉलो करें महाशिवरात्रि है शिव की महारात्रि, जानिए 9 रहस्य

अनिरुद्ध जोशी

प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि या मासिक शिवरात्रि कहा जाता है। इसे ही प्रदोष भी कहा जाता है। जब यही प्रदोष श्रावण माह में आता है तो उसे वर्ष की मुख्‍य शिवरात्रि माना जाता है। दूसरी ओर फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विशेष महत्व और विधान है।
 
1. ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे।
 
2. माना जाता है कि इसी रात्रि को भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। तत्ववेत्ताओं द्वारा इसे जीव और शिव के मिलन की रात्रि कहा जाता है। इसीलिए इस रात्रि को महिलाएं अच्छे पति, वैवाहिक सुख और पति की लंबी आयु की कामना से भी मनाती हैं।
 
3. कुछ का मानना है कि शिव ने तांडव नृत्य कर सृष्टि को भस्म कर दिया था तब सृष्टि की जगह बहुत काल तक यही महारात्रि छाई रही। देवी पार्वती ने इसी रात्रि को शिव की पूजा कर उनसे पुन: सृष्टि रचना की प्रार्थना की इसीलिए इसे शिव की पूजा की रात्रि कहा जाता है। फिर इसी रात्रि को भगवान शंकर ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा से स्वयं को ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित किया।
 
4. यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि को भगवान शंकर का रुद्र के रूप में ब्रह्मा से अवतरण हुआ था। विष्णु से ब्रह्मा और ब्रह्मा से रुद्र की उत्पत्ति मानी जाती है।
 
5. समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से विष (हलाहल) उत्पन्न हुआ तो भगवान शंकर ने उक्त विष को पीकर अपने कंठ में सजा लिया इसीलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। विषपान की इस रात्रि की याद में भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
 
6. शैव पंथ में रात्रियों का महत्व अधिक है। हिंदु धर्मग्रंथानुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि की रात्रि से संबंधित कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
 
7. प्रत्येक प्रांत में शिव पूजा और उत्सव को मनाने के तरीके भिन्न-भिन्न हो सकते हैं किंतु पूजा में शिव को आंकड़े का फूल और बिल्व पत्र ही चढ़ाया जाता है और जहां भी उनका ज्योतिर्लिंग है वहां भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है। उक्त पूजा के बाद ही उत्सव का आयोजन होता है जिसमें कुछ लोग भाँग पीते हैं और रातभर जागरण करते हैं।
 
8. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। सूर्यदेव इस समय पूर्णत: उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया है।
 
9. प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Vastu Tips : द्वार की चौखट पर वंदनवार लगाने के 6 फायदे