भगवान शिव की गंगा क्यों उदास है? महाशिवरात्रि पर मंथन गंगा प्रदूषण पर
महाशिवरात्रि यानी शिव, शंकर, भोले भंडारी को प्रसन्न करने की तैयारी....एकमात्र शिव जी ही हैं जो मात्र जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं...जल की बूंद, जल की पतली धार या फिर जल का सहस्त्रधारा अर्चन...भोलेनाथ को प्रसन्न करता है सबसे सरलतम उपाय मात्र जल... शिवपुराण में कहा गया है भगवान शिव स्वयं जल हैं.... जी हां, भगवान शिव स्वयं जल हैं। जानिए महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिवजी का जल से कनेक्शन...
भगवान शिवजी का जल से कनेक्शन
शिव पुराण पढ़ते हुए हमें यह मंत्र मिलता है....
संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्। भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः ॥
इस मंत्र का अर्थ है शिव स्वयं जल हैं। जो जल समस्त जगत् के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन् उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए।
भागीरथ, गंगा और शिव: गंगा के लिए भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने- 'राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के आवेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति सिर्फ देवों के देव महादेव में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव को भी प्रसन्न किया जाए।
महाराज भगीरथ ने वैसा ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शंकर ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। बाद में भगीरथ की आराधना के बाद उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर दिया। गंगा को विष्णुपदी भी कहा जाता है क्योंकि ब्रह्माजी ने श्रीहरि विष्णु के चरण कमल धोये और उसका जल अपने कमंडल में रख लिया था।
समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है शिव को जल चढ़ाने का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन किया गया था। मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला। भगवान शंकर ने इस विष को अपने कंठ में उतारकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी।
भगवान शिव को जल चढ़ाने का महत्व : भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व भी इसी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है।
शिवरात्रि पूजा में जल
'शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्र्याख्याम्।'
शिवरात्रि में शिव की जल अर्चना और रात्रि जागरण का प्रावधान है। इस महारात्रि को शिव को जल चढ़ाना ही महाव्रत है।
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के व्रत पर भगवान शिव को जल नहीं चढ़ाता है वह सांसारिक माया, मोह के बंधन में हजारों वर्षों तक उलझा रहता है। जो शिवरात्रि पर जल अर्पित करता है या कहीं भी किसी भी शिवजी के मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग को जलधारा चढ़ाता है वह जन्म-मरण पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति पा जाता है।
संसार क्लेश दग्धस्य व्रतेनानेन शंकर। प्रसीद समुखोनाथ, ज्ञान दृष्टि प्रदोभव॥
- इस मंत्र का तात्पर्य यह कि भगवान शंकर! मैं हर रोज संसार की यातना से, दुखों से तप रहा हूं। मेरी बूंद बूंद जलधार से आप मुझ पर प्रसन्न हों और प्रभु संतुष्ट होकर मुझे ज्ञान दृष्टि के साथ शीतल शांति प्रदान करें।
जल के अपव्यय और प्रदूषण से नाराज होते हैं शिव
शास्त्रों में वर्णित है कि शुद्ध जल चढ़ाने से जहां शिव प्रसन्न होते हैं वहीं जल के अपव्यय और प्रदूषण से वे नाराज होते हैं। यानी शिव को प्रसन्न करना है तो जल का सदुपयोग जरूरी है। साक्षात जल को ही शिव स्वरूप जब तक नहीं माना जाएगा तब तक जल और शिव का कनेक्शन समझ नहीं आएगा। शिवजी के मस्तक पर गंगा और चंद्र दोनों विराजित है यह दोनों जल के शुभ प्रतीक हैं। जल, पानी, नीर प्रकृति के इस चमत्कार को शिव के द्वारा ही समझा जा सकता है। कैलाश मानसरोवर से लेकर बाबा अमरनाथ तक, 12 ज्योतिर्लिंग से लेकर अलग अलग जंगल, पहाड़ गुफाओं तक शिव से जुड़े रहस्यमयी स्थानों तक... बिना जलराशि के शिव आपको कहीं नहीं मिलेंगे... कहीं वह पानी बर्फ के रूप में है तो कहीं वह झर झर झरना बनकर प्रवाहित है, कहीं नदी बनकर ही शिव के समीप है तो कहीं समुद्र की उत्ताल लहरों के बीच विराजित शिवलिंग...कहना सिर्फ यही है कि विशाल जलराशि के बीच भी वही है और मात्र बूंद या धार से प्रसन्न होने वाले भी वही शिव है....
शव से शिव होने की यात्रा
शिव यानि शुभ, मंगलमय, कल्याणकारी....'इ' की मात्रा हटाने पर जो बचता है वह है शव...अशुभ, अमंगल का प्रतीक.... लेकिन शव होने के बाद ही शिवधाम को पाने की यात्रा आरंभ होती है... शव होना हर मानव जीवन का शाश्वत सत्य है....अंतिम समय में जीभ पर गंगाजल हो या बाद में गंगा में अस्थियां विसर्जन ... जल के बिना गति संभव नहीं...शिव हमारे भीतर रहें तो शिवरात्रि है। हम में शिवत्व, शिव तत्व बचा रहे तो शिवरात्रि है। हम शव होकर भी शिव की शरण में पंहुचें तो शिवरात्रि है। शव से शिव होने की यात्रा का अर्थ ही जड़ से चैतन्य होने की यात्रा है...
जल से चली बात शव पर आकर क्यों रूकी?
जल पर शव हो या शव पर जल हो...जन्म से लेकर मरण तक जल हमारे जीवन में शिवत्व को शामिल करता है.... महाशिवरात्रि पर शिव के मस्तक पर विराजित गंगा पर चिंतन जरूरी है...पिछले दिनों महामारी के दौर में जब गंगा नदी पर तैरते जले-अधजले शवों ने विलाप और प्रलाप की रुदन गाथा रची थी तो शिव के सिर पर विराजित गंगा भी आंसू कहां रोक पाई होंगी....
बनारस हो या प्रयाग, हरिद्वार हो कोलकाता...गंगा आज भी देखती है जलते हुए तन अपने जल में...हर दिन, प्रतिदिन, परमात्मा शिव की आंख से गिरते हैं आंसू पर नहीं बन पाते हैं रूद्राक्ष...क्योंकि हम नहीं जान पाते हैं जिस गंगाजल से हम अपनी देह और आत्मा की पवित्रता चाह रहे हैं उसे कितने स्तर पर हम ही दूषित करने पर तुले हैं... इस बार महाशिवरात्रि पर चाहे आप गंगा या किसी भी जवनदायिनी नदी के किनारे हो या घर में ही शुद्ध जल का कलश आपके कर(हाथ) में हो याद रखना है एक ही बात कि शिव ही जल है, जल ही शिव है...वह बूंद से भी प्रसन्न होंगे, धार से भी प्रसन्न होंगे, जल के स्मरण और स्पर्श से भी प्रसन्न होंगे...धरा पर उपस्थित देवी गंगा के साथ समस्त जलराशि को सहेज कर ही हम शिव की कृपा को पा सकेंगे...बचा लो जितना बचा सको, बस इतनी सी बात है...यह शिवरात्रि जल के साथ स्वयं के कोमल शिव तत्व को बचाने की भी रात है.....
जल जीवन के लिए जरूरी है हमें बूंद बूंद का सम्मान करना ही होगा... जल को सहेजें हर पल, जलमय बनाएं अपना कल...जल है तो कल है, जीवन हर पल है... ये नारे नहीं है चेतावनियां हैं.... जल की, कल की.. हर पल की...
बहरहाल देश की प्रमुख नदी गंगा के आंकड़े इतने डरावने हैं तो जरा सोचिए देश भर की नदियों और अन्य जल राशि की स्थिति कितनी भयावह होगी...
देश के कई राज्य नदी जल बंटवारे को लेकर आमने सामने हैं। कृष्णा, कावेरी, नर्मदा जैसी नदियों के जल को लेकर कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडू, पुड्डुचेरी के बीच जो विकराल स्थितियां बनी है वह किसी से छुपी नहीं है। आने वाली पीढ़ी तो छोड़ दीजिए खुद अपने लिए ही हमें अपनी रोज की आदतों से लेकर धार्मिक मान्यताओं तक और कृषि व उद्योग जगत के साथ हर क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव करने ही होंगे...
पड़ोसी देशों से ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियों को लेकर हमारे रिश्तों में कड़वाहट भी जगजाहिर है। चीन ब्रह्मपुत्र को लेकर पुर्वोत्तर राज्यों में जल संकट पैदा कर सकता है और यही संदेह पाकिस्तान को हम पर है... नेपाल और बांग्लादेश भी इसी नाव पर सवार है... जल संकट के मामले में भारत अभी 120वें स्थान पर है....जल से ज्यादा चिंता है विषमय होता जल....
दावे तो यह भी किए जा रहे हैं कि तीसरे विश्व युद्ध से लेकर, कई देशों में विभाजन और बड़ी संख्या में देश छोड़ने की अगर कोई वजह होगी तो वह है पानी, सिर्फ पानी... बूंद भर पानी, अंजुरि भर पानी, एक आचमन पानी..