शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वती के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। मोक्ष की प्राप्ति कराने वाले चार संकल्प पर नियमपूर्वक पालन करना चाहिए।
यह चार संकल्प हैं- शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिव मंदिर में उपवास तथा काशी में देह त्याग। शिवपुराण में मोक्ष के चार सनातन मार्ग बताए गए हैं। इन चारों में भी शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है। अतः इसे अवश्य करना चाहिए।
यह सभी के लिए धर्म का उत्तम साधन है। निष्काम अथवा सकामभाव से सभी मनुष्यों, वर्णों, स्त्रियों, बालकों तथा देवताओं के लिए यह महान व्रत परम हितकारक माना गया है। प्रत्येक मास के शिवरात्रि व्रत में भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में होने वाले महाशिवरात्रि व्रत का शिवपुराण में विशेष महात्म्य है।
महाशिवरात्रि पूजा विधि
शिवपुराण के अनुसार व्रती पुरुष को प्रातः काल उठकर स्नान संध्या कर्म से निवृत्त होने पर मस्तक पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्ष माला धारण कर शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं शिव को नमस्कार करना चाहिए। तत्पश्चात उसे श्रद्धापूर्वक व्रत का इस प्रकार संकल्प करना चाहिए-
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम।
निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।
यह कहकर हाथ में लिए पुष्पाक्षत् जल आदि को छोड़ने के पश्चात यह श्लोक पढ़ना चाहिए-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु से
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाशः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि॥
हे देवदेव! हे महादेव! हे नीलकण्ठ! आपको नमस्कार है। हे देव! मैं आपका शिवरात्रि व्रत करना चाहता हूं। हे देवश्वर! आपकी कृपा से यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण् हो और काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रु मुझे पीड़ित न करें।