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शिवरात्रि विशेष : कल्पवृक्ष के समान है शिव आराधना

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शिव की उपासना मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष की प्राप्ति के समान है। भगवान शिव से जिसने जो चाहा उसे प्राप्त हुआ। महामृत्युंजय शिव की कृपा से मार्कण्डेय ऋषि ने अमरत्व प्राप्त किया और महाप्रलय को देखने का अवसर प्राप्त किया।


 


देवता, दानव और मनुष्य ही नहीं समस्त चरा-चर का कोई ईश्वर है तो वह है सदाशिव, भगवान शिव अपने पास कुछ नहीं रखते बल्कि सब कुछ अपने भक्तों को दे देते हैं।

शिव से वरदान लेने वालों को सावधानी भी रखनी चाहिए। शिव से वरदान लेकर अशिव कार्य करने से भस्मासुर के समान स्वयं की ही हानि होती है। श्री शैल शिखर पर विराजमान भगवान शिव की सेवा में संपूर्ण प्रकृति रहती है। मंदसुगंध पवन वन वृक्षों के स्पंदन से चंवर डुलाती है तो बांज-बुरांश, कुटज पुष्पों से उनका प्राकृतिक श्रृंगार होता रहता है।


उमड़ते घुमड़ते मेघ वर्षा से उनका सतत अभिषेक करते हैं, रात्रि में चंद्र किरणें हिम-तुषार किरणों से आच्छादन सेवा करते हैं। ऐसे आशुतोष भगवान के द्वार में जाकर भक्तजन श्रद्धा से नतमस्तक होकर धन्य हो जाते हैं।

प्रभु सुमिरण में ऐसी महाशक्ति है जो जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी बाधाओं का पहले ही निवारण कर देती है। वस्तुतः बाधाएं तो क्या भगवान के नाम का प्रभाव महाप्रलय की दिशा बदने की क्षमता रखता है। मनुष्य को अपने व्यस्त जीवन में शिव सुमिरण के लिए कुछ समय अवश्य निकालना चाहिए। यही मनुष्य के जीवन का असली खजाना होता है।



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