शिवरात्रि : शिव को प्रसन्न करने का दिन
- पंडित बृजेश कुमार राय
जो दैवी शक्ति प्रसन्न होने के बाद देने के लिए कुछ भी अशेष नहीं रखती। यहां तक कि भस्मासुर को ऐसा वरदान दे सकती है जो उनके स्वयं के सर्वनाश के लिए समर्थ हो जाता है। तो फिर वह किसी को भी क्या नहीं दे सकता है? और फिर यदि परम पावन किसी ऐसे पर्व पर उनकी अर्चना की जाए जिसका प्रणयन स्वयं भगवान शिव ने ही किया हो, तो क्या नहीं प्राप्त किया जा सकता?
एक बात तो सर्वथा स्पष्ट है कि सत्य युग में किसी देवी अथवा देवता को प्रसन्न करने के लिए उग्र तप करना पड़ता था। त्रेतायुग में भी इसी लाभ के लिए अनेक यज्ञ करने पड़ते थे।
द्वापर में मंत्र जाप, दान अथवा कर्मयोग का सहारा लेना पड़ता था। किन्तु कलियुग में इस काल की भीषणता, कलुषता तथा मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक एवं चारित्रिक व्याभिचार के चलते इसी की उपलब्धि के लिए यंत्र एवं तंत्र का सहारा ही शेष रह गया है और इसके प्रणेता नटराज भगवान शिव ही हैं। वैसे भी यह सर्व विदित है कि व्याकरण शास्त्र के प्रणेता महर्षि पाणिनी ने भी 'शिव सूक्त' भगवान शिव से ही प्राप्त किए थे।