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पहला श्राद्ध, पूर्णिमा को करते हैं किसका श्राद्ध, नहीं किया तो क्या होगा?

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, शुक्रवार, 9 सितम्बर 2022 (10:54 IST)
श्राद्धपक्ष की शुरुआत भाद्रपद की पूर्णिमा से होती है। व्यक्ति की मृत्यु चाहे कृष्णपक्ष में या शुक्लपक्ष में हुई हो सभी की तिथि आश्‍विन माह के कृष्णपक्ष में यानी की श्राद्ध या पितृपक्ष में ही रहती है। इस दौरान चंद्रमंडल से सभी के पूर्वज धरती पर आते हैं, यदि वे वहां गए हों तो। अन्यथा जिसने जहां जन्म लिया है वहीं उसे श्राद्ध का फल पहुंच जाता है। आओ जानते हैं कि पूर्णिमा के दिन किसका श्राद्ध करते हैं?
 
1. पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं। पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या।
 
2. उक्त किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है।
 
3. जिनकी मृत्यु पूर्णिमा को हुई है उनका श्राद्ध पूर्णिमा को करते हैं। माना जाता है कि उत्तरायण के दौरान पूर्णिमा के दिन जिन्होंने देह छोड़ी है उन्हें सद्गति मिलती है। 
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4. पूर्णिमा तिथि के श्राद्ध को ऋषि तर्पण भी कहा जाता है। इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहते हैं। यानी इस दिन आप ऋषियों के साथ ही अपने गुरु का तर्पण भी कर सकते हैं।
 
5. पूर्णिमा के दिन खासकर मंत्रदृष्टा अगस्त्य मुनि का तर्पण किया जाता है। अगस्त्य मुनि भगवान शिव के 7 शिष्यों में से एक थे। 
 
6. अगस्त्य मुनि ने विध्यांचल पर्वत को पार करके दक्षिण में प्रवेश किया था। विध्यांचल पर्वत ने उनसे विनति करके कहा था कि मुझे ज्ञान दें। तब अगस्त्य मुनि ने कहा था कि मैं इधर से पुन: लौटूंगा तब ज्ञान दूंगा तब तक तुम यहीं झुककर खड़े रहो। कहते हैं कि अगस्त्य मुनि दूसरे रास्ते से पुन: कैलाश लौट गए थे और कांति सरोवर के पास उन्होंने देह त्याग दी थी। वे करीब 400 वर्ष तक जीवित रहे ते।
 
7. अगस्त्य मुनि ने ही संपूर्ण दक्षिण भारत में धर्म और संस्कृति को स्थापित किया था। अगस्त्य मुनि ने ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए समुद्र को पी लिया था और दो असुरों को खा गए थे।
 
8. अगस्त्य मुनि के सम्मान में श्राद्धपक्ष की पूर्णिका तिथि को इनका तर्पण करके ही पितृपक्ष की शुरुआत की जाती है। अगस्त्य मुनि और पितृदेव अर्यमा को तर्पण दिए बगैर पितरों को श्राद्ध नहीं लगता है। यदि आपने अगस्त्य मुनि और पितरों के पंचायत का आह्‍वान नहीं है और पंचबलि कर्म नहीं किया है तो पितरों को श्राद्ध का फल नहीं मिलेगा और न ही उन्हें सद्गति मिलेगी।
 

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