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श्रद्घा का श्राद्घपक्ष शुरू

द्वादशी तिथि का क्षय,15 दिन के होंगे श्राद्घपक्ष

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पितरों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्घा व्यक्त करने का पर्व श्राद्घपक्ष शुक्रवार से शुरू हो रहा है। 4 सितंबर को पूर्णिमा के श्राद्घ के साथ शुरू हो रहे श्राद्घपक्ष 18 सितंबर तक चलेंगे। द्वादशी तिथि का क्षय होने के कारण इस बार श्राद्घपक्ष सोलह की बजाय पंद्रह दिन के होंगे।

आश्विन माह के कृष्णपक्ष का पूरा पखवा़ड़ा श्राद्घपक्ष कहलाता है। इसमें भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा का दिन शामिल कर देने से यह सोलह दिनों का हो जाता है। ये दिन मृत परिजनों की संतुष्टि और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के होते हैं। इन दिनों में पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्घ और तर्पण करने से वे प्रसन्न होकर सुख, समृद्घि, इच्छित संतान और आरोग्यता प्रदान करते हैं।

मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि श्राद्घपक्ष में समस्त पितर धरती पर आकर अपने परिजनों के साथ रहते हैं। इसलिए इन दिनों में पितरों की संतुष्टि के लिए तर्पण आदि किए जाना चाहिए। पितरों के निमित्त श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन कराने, दान देने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है।

एकादशी-द्वादशी का श्राद्घ एक ही दि
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पं. रामकृष्ण डी. तिवारी का कहना है कि पूर्णिमा का श्राद्घ 4 सितंबर को होगा। प्रतिपदा से लेकर दशमी तिथि तक का श्राद्घ क्रमशः 5 से 14 सितंबर तक होगा। इस बार द्वादशी तिथि का क्षय हो रहा है। इसलिए एकादशी और द्वादशी तिथि का श्राद्घ एक ही दिन 15 सितंबर को होगा। इसके बाद त्रयोदशी का श्राद्घ 16 सितंबर को, चतुर्दशी का श्राद्घ 17 सितंबर को और सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्घ 18 सितंबर को होगा।

पं. वासुदेव शास्त्री का कहना है कि श्राद्घपक्ष में पितरों की शांति के निमित्त जौ, तिल, चावल, दूध, जलपात्र में रखकर कुशा हाथ में लेकर पूर्व दिशा की ओर मुँह कर तर्पण करना चाहिए। तर्पण जलाशय या नदी में खड़े होकर किया जाना चाहिए। पूर्व दिशा में 11 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार तर्पण किया जाता है। पितृदोष दूर करने के लिए भी परिजनों को श्राद्घपक्ष में तर्पण करना चाहिए। घर में प्रतिदिन घी से धूप देने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।

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