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श्राद्ध पक्ष में आशीर्वाद लें पितरों का

त्रिपिंडी तर्पण से पितृ होते हैं तृप्त

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पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

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पितृ एवं कुलदेवी अथवा कुल भैरव प्रत्येक कार्य में अग्रणी होते हैं। इनका पूजन एवं आह्वान सर्वप्रथम किया जाता है। हिन्दी शास्त्रों एवं हिन्दू मतानुसार किसी भी पूजन के पहले पितृ श्राद्ध, पितृ तर्पण अथवा उनके लिए नांदीश्राद्ध करना चाहिए। यहाँ तक कि आपके परिवार में शादी अथवा शुभ कार्य की तिथि निश्चित हो गई हो, तब आप पंद्रह दिन पहले पितरों के लिए त्रिपिंडी पूजन कर लें।

इसके पश्चात कार्य करें तो किसी प्रकार की तकलीफ नहीं आती। शादी के वक्त परिवार से संबंधित कुटुंब का कोई सदस्य स्वर्गवासी हो जाए तब भी बिना सूतक पाले कार्य निर्विघ्न कर सकते हैं।

विशेषकर पितृ पक्ष सोलह दिन रहता है, जो शास्त्रोनुसार भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक रहता है। इन दिनों किया गया पितृ श्राद्ध बहुत महत्वपूर्ण एवं लाभदायक होता है। प्रत्येक पितृ अपने परिवार में भाग लेने पहुँचते हैं।

प्रत्येक परिवार को अपने पितरों का तर्पण करना चाहिए जिससे उनके पितृ तृप्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो एवं आशीर्वाद प्रदान करें। इस तर्पण से आपके पितृ नरक में हो, यातना भुगत रहे हो, सात समुद्र पार भटक रही आत्मा, इस जन्म के बाँधव हो, पिछले जन्म के बाँधव हो, माता पक्ष के हो अथवा पिता पक्ष के हो, यहाँ तक कि ससुराल पक्ष के मित्र, पड़ोसी भी तर्पण से तृप्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।

नरकेषु समस्तेषु यातनासु च ये स्थिता:।
तेषामाप्यायनायैतध्दीयते सलिनं मया।।
येऽबाँधवा बान्धावश्च येऽयजन्मानि बान्धवा:।
ते तृप्तिमखिला यान्तु यश्चास्मतोडभिवाच्छति।

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किसी परिवार का पितृ दोष श्राद्ध पक्ष में किए गए किसी भी तीर्थ में पिंडदान अथवा त्रिपिंडी तर्पण करने से दूर हो जाता है। यजुर्वेद में पितरों के तर्पण की विशेष पूजन विधि को दर्शाया गया है।

पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वधा नम:। पितामहेभ्य: स्वा‍धायिभ्य: स्वधानम:।
अक्षन्पितरोऽभीमदन्त पितरोडतीतृपन्त पितर: पितर: शुन्धध्वम।

ये चेह पितरो ये च नेह याश्च विधयाँउच न प्रत्रिध।
त्वं वेत्थयति ते जातवेद: स्वधाभिर्यज्ञ सुकृतं जुषस्व।

पितृ ही है जो आपके वंश को आगे बढ़ाते हैं एवं अन्न का भंडार भरते हैं, बहुधन का भंडार भरते हैं। पितरों से पुत्र, पुत्रबंधु, नाती, पुत्री भ्राता एवं कुटुंब के सभी व्यक्तियों को आशीर्वाद माँगना चाहिए।

ऊँ गोत्रन्नो वर्ध्दतां दातारो नोत्रभिवर्द्धन्तां वेदा: संततिरेव च।।
श्रद्धा च नो मा व्यगमद्‍ बहु देयं नोऽस्तु।।
अन्नं च तो बहु भवे‍दतिधीश्च लभेमहि।।
याचिता न: संतु मा च याचिष्म कञ्चन।

इस प्रकार पितरों से माँगने पर आप सुख, यश, वैभव सभी प्राप्त कर लेंगे। इन दिनों आपके द्वार से याचक (माँगने वाला) खाली नहीं जाना चाहिए।

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