।।अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥29॥ - गीता
भावार्थ : हे धनंजय! नागों में मैं शेषनाग और जलचरों में वरुण हूं; पितरों में अर्यमा तथा नियमन करने वालों में यमराज हूं।
पुराणों के अनुसार मुख्यत: पितरों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है - दिव्य पितर और मनुष्य पितर। दिव्य पितर उस जमात का नाम है जो जीवधारियों के कर्मों को देखकर मृत्यु के बाद उसे क्या गति दी जाए, इसका निर्णय करता है।
इस जमात का प्रधान यमराज है। अत: यमराज की गणना भी पितरों में होती है। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- यह चार इस जमात के सदस्य हैं।
इन चारों के अलावा प्रत्येक वर्ग की ओर से सुनवाई करने वाले हैं यथा: अग्निष्व, देवताओं के प्रतिनिधि, सोमसद या सोमपा-साध्यों के प्रतिनिधि तथा बर्हिपद-गन्धर्व, राक्षस, किन्नर सुपर्ण, सर्प तथा यक्षों के प्रतिनिधि हैं।
इन सबसे गठित जो जमात है, वही पितर हैं। यही मृत्यु के बाद न्याय करती है।