16 दिवसीय पितृपक्ष, श्राद्ध पर्व, श्राद्ध महालय आरंभ हो गए हैं। इन 16 दिनों में पूर्वजों को स्मरण कर उनके लिए तर्पण किया जाता है। श्राद्ध वाले दिन ब्राह्मण भोजन से पूर्व पूर्वजों के हिस्से का भोजन कौआ और मछली को देना शुभ माना जाता है।
यदि कौआ और मछली सरलता से न मिल सके तो सिर्फ गाय को ही पूर्वजों के हिस्से का भोजन दे सकते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौआ और मछली का जितना महत्व है, उतना ही गाय का भी है।
श्राद्ध के दिन तर्पण के बाद पूर्वजों के भाग का भोज कौआ, मछली, गाय, कन्या, कुत्ता और भिक्षुक को दे सकते हैं। लेकिन कौआ, मछली और गाय का विशेष महत्व है। कौआ और मछली न मिलने पर गाय को भोजन दिया जा सकता है।
19 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या रहेगी। 20 सितंबर को नाना के श्राद्ध के साथ पितृपक्ष का समापन होगा। पितृपक्ष में पूर्वजों की शांति के लिए आह्वान किया जाता है। उनसे शुभाशीष की कामना की जाती है। सुबह स्नान कर नदी, तालाब या घर में किसी बर्तन में काली तिल्ली, दूब, जौ आदि रखकर जल से तर्पण करें। इस दौरान पहले देवतर्पण, इसके बाद ऋषि तर्पण और पितृ तर्पण करें। 21 सितंबर से घटस्थापना के साथ नवरात्र पर्व प्रारंभ होगा।