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श्राद्ध पक्ष : पितरों के रुष्ट होने के लक्षण और उपाय

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अनिरुद्ध जोशी

क्या पितृदोष से हमें डरना चाहिए? क्या पितृदोष एक भयानक दोष है? इन सभी का जवाब है नहीं। नहीं क्यों? इसके कई कारण है। यदि आपके कर्म अच्छे हैं तो आपको किसी से भी डरने की जरूरत नहीं। किसी भी प्रकार के दोष निवारण करने की जरूरत नहीं। परंतु यदि आप गलत रास्ते पर हैं तो फिर आपको सोचना होगा।
 
 
पितृदोष क्या?
1. इस जन्म का पितृ दोष : पितृ बाधा का मतलब यह होता है कि आपके पूर्वज आपसे कुछ अपेक्षा रखते हैं या आप कुछ ऐसा कर्म कर रहे हैं जिसके चलते वे रुष्ठ हैं। आपसे पुत्र और पु‍त्री की अपेक्षा है जिसके चलते पितृ और मात्र ऋण उतरता है जिसे आप पूरा करने में सक्षम नहीं है। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष माना गया है।
2. पिछले जन्म का पितृ दोष : हमारे पूर्वज कई प्रकार के होते हैं, क्योंकि हम आज यहां जन्में हैं तो कल कहीं ओर। पिछले जन्म का पितृदोष कुंडली में प्रदर्शित होता है, जैसे गुरु और राहु का एक जगह एकत्रित होना। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। लाल किताब में कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता है। सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष हैं। यदि लग्न में राहु बैठा है तो सूर्य कहीं भी हो उसे ग्रहण होगा और यहां भी पितृ दोष होगा। चन्द्र के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु होने पर भी पितृ दोष होगा। इस तरह कुंडली में पितृदोष के होने की कई स्थितियां बताई गई है। खासकर नौवें से पता चलता है कि जातक पिछले जन्म में क्या करके आया है। यदि नौवें घर में शुक्र, बुध या राहु है तो यह कुंडली पितृ दोष की है।
 
3. अन्य कारण : आपके पूर्वजों के पाप कर्म का आप भुगतान कर रहे हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों का लहू, आपकी नसों में बहता है। दूसरा शारीरिक है जिसका अर्थ है कि आपके पिता या पूर्वजों में जो भी दुर्गुण या रोग रहे हैं वह आपको भी हो सकते हैं।
 
पितृदोष का लक्षण
1. कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता है, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए।
2. पितृदोष के कारण हमारे सांसारिक जीवन में और आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं।
3. आपको ऐसा लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति आपको परेशान करती है तो पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए।
4. पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है।
5. ऐसा माना जाता है कि यदि किसी को पितृदोष है तो उसकी तरक्की रुकी रहती है। समय पर विवाह नहीं होता है। कई कार्यों में रोड़े आते रहते हैं। गृह कलह बढ़ जाती है। जीवन एक उत्सव की जगह संघर्ष हो जाता है। रुपया पैसा होते हुए भी शांति और सुकून नहीं मिलता है। शिक्षा में बाधा आती है, क्रोध आता रहता है, परिवार में बीमारी लगी रहती है, संतान नहीं होती है, आत्मबल में कमी रहती है आदि कई कारण या लक्षण बताए जाते हैं। 
 
पितृदोष का कारण
1. घर के पितरों या बड़ों ने पारिवारिक पुजारी या धर्म बदला होगा। 
2. घर के पास में किसी मंदिर में तोडफोड़ हुई होगी या कोई पीपल का पेड़ काटा गया होगा।
3. पिछले जन्म में आपने कोई पाप किया होगा। अपने पिता या माता को सताया होगा।
4. आपके पूर्वजों ने कोई पाप किया होगा जिसका परिणाम आपको भुगतना पड़ रहा है।
5. आप किसी पाप कर्म में संलग्न है जिसके चलते आपे पूर्वज आपने रुष्ठ हो चले हैं।
6. कुछ लोग हमेशा अपने माता-पिता या अपनी संतानों को कोसते, सताते रहते हैं। 
7. आपने गाय, कुत्ते और किसी निर्दोष जानवर को सताया होगा।
 
पितृ दोष से मुक्ति के उपाय
1. कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। प्रतिदिन सुबह और शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर जरूर जलाएं।
2. तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़ और घी के मिश्रण को कंडे (उपले) पर चलाने से भी देव और पितृदोष दूर होते हैं।
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3.प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ना।
4.श्राद्ध पक्ष के दिनों में तर्पण आदि कर्म करना और पूर्वजों के प्रति मन में श्रद्धा रखना भी जरूरी है।
5.घर का वास्तु सुधारे और ईशान कोण को मजबूत एवं वास्तु अनुसार बनाएं।
6.अपने कर्म को सुधारें, क्रोध और शराब को छोड़कर परिवार में परस्पर प्रेम की स्थापना करें।
7.घृणा, छुआछूत, जातिवाद, प्रांतवाद इत्यादि की भावना से मुक्त होकर पिता, दादा, गुरु, स्वधर्मी और देवताओं का सम्मान करना सीखें।
9.परिवार के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में सिक्के इकट्ठे करके उन्हें मंदिर में दान करें।
10. देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना चाहिए।
11. दरअसल, हमारा जीवन, हमारे पुरखों का दिया है। हमारे पूर्वजों का लहू, हमारी नसों में बहता है। हमें इसका कर्ज चुकाना चाहिए। इसका कर्ज चुकता है पुत्र और पुत्री के जन्म के बाद। यदि हमने अपने पिता को एक पोता और माता को एक पोती दे दिया तो आधा पितृदोष तो वहीं समाप्त।
 
12.दूसरा हमारे उपर हमारे माता पिता और पूर्वजों के अलावा हम पर स्वऋण (पूर्वजन्म का), बहन का ऋण, भाई का ऋण, पत्नी का ऋण, बेटी का ऋण आदि ऋण होते हैं। उक्त सभी का उपाय किया जा सकता है। पहली बात तो यह की सभी के प्रति विनम्र और सम्मानपूर्वक रहें।
13. कौए, चिढ़िया, कुत्ते और गाय को रोटी खिलाते रहना चाहिए। पीपल या बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाते रहना चाहिए। केसर का तिलक लगाते रहना चाहिए। कुल कुटुंब के सभी लोगों से बराबर मात्रा में सिक्के लेकर उसे मंदिर में दान कर देना चाहिए। दक्षिणमुखी मकान में कदापी नहीं रहना चाहिए। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्‍भागवत गीता का पाठ करने से पितृदोष चला जाता है। एकादशी के व्रत रखना चाहिए कठोरता के साथ। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। 

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