धर्मसिन्धु में श्राद्ध के लिए सिर्फ पितृपक्ष ही नहीं, बल्कि 96 कालखंड का विवरण प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है- वर्ष की 12 अमावास्याएं, 4 पुणादि तिथियां, 14 मन्वादि तिथियां 12 संक्रान्तियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 15 पितृपक, 5 अष्टका, 5 अन्वष्टका और 5 पूर्वेद्यु:। श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक रहता है। इस साल अंग्रेंजी कैलेंडर अनुसार 20 सितंबर से 6 अक्टूबर 2021 तक यह पर्व चलेगा। आओ जानते हैं कि श्राद्ध कर्म के कितने प्रकार होते हैं।
1. मुख्यत: दो प्रकार : पार्वण और एकोदिष्ट।
*पार्वण श्राद्ध : पार्वण श्राद्ध में पिता, दादा, पड़-दादा, नाना, पड़-नाना तथा इनकी पत्नियों का श्राद्ध किया जाता है।पार्वण श्राद्ध अपराह्न काल का होता है जो मृत्यु के दिन सूर्योदय के बाद 10वें मुहूर्त से लेकर 12वें मुहूर्त तक किया जाता है।
* एकोदिष्टि श्राद्ध : इसमें गुरु, ससुर, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, शिष्य, फूफा, पुत्र, मित्र व इन सभी की पत्नियों का श्राद्ध किया जाता है। एकोदिष्टि श्राद्ध मध्याह्न काल में 7वें मुहूर्त से लेकर 9वें मुहूर्त तक मृत्यु तिथि पर किया जाता है।
2. श्राद्ध के 12 प्रकार : भविष्यपुराण में 12 प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं।
* नित्य- रोज किए जाने वाला श्राद्ध।
* नैमित्तिक- वर्ष में एक बार तिथि विशेष को किया जाने वाले श्राद्ध।
* काम्य- किसी कामना की पूर्ति हेतु किया जाने वाले श्राद्ध।
* नान्दी- किसी मांगलिक अवसर पर किया जाने वाला श्राद्ध।
* पार्वण- पितृपक्ष, अमावस्या एवं तिथि विशेष में किया जाने वाला श्राद्ध। पावर्ण श्राद्ध का उपरोक्त उल्लेख भी पढ़ें।
* सपिण्डन- त्रिवार्षिक श्राद्ध जिसमें प्रेतपिण्ड का पितृपिण्ड में सम्मिलन कराया जाता है।
* गोष्ठी- पारिवारिक या स्वजातीय समूह में जो श्राद्ध किया जाता है। पारिवार के लोगों के एकत्र होने पर किया जाता है।
* शुद्धयर्थ- शुद्धि हेतु किया जाने वाला श्राद्ध। इसमें परिवार की शुद्धता की कामना की जाती है।
* कर्मांग- षोडष संस्कारों के निमित्त किया जाने वला श्राद्ध।
* दैविक- देवताओं के निमित्त किया जाने वाला श्राद्ध।
* यात्रार्थ- तीर्थ स्थानों में किया जाने वाला श्राद्ध।
* पुष्ट्यर्थ- स्वयं एवं पारिवारिक सुख-समृद्धि व उन्नति के लिए किया जाने वाला श्राद्ध।
3. तर्पण के प्रकार : तर्पण के 6 प्रकार हैं- 1. देव-तर्पण 2. ऋषि-तर्पण 3. दिव्य-मानव-तर्पण 4. दिव्य-पितृ-तर्पण 5. यम-तर्पण 6. मनुष्य-पितृ-तर्पण। सभी के के लिए तर्पण करते हैं।
4. पिंडदान : चावल को गलाकर और गलने के बाद उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल पिंड बनाए जाते हैं। जनेऊ को दाएं कंधे पर पहनकर और दक्षिण की ओर मुख करके उन पिंडो को पितरों को अर्पित करने को ही पिंडदान कहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि चावल से बने पिंड से पितर लंबे समय तक संतुष्ट रहते हैं। कम से कम तीन पीढ़ी का पिंडदान किया जाता है। पहले तीन पिंड बनाते हैं। पिता, दादा और परदादा। यदि पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं।