सर्वपितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा महालय हिन्दू धर्म में अत्यंत ही महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस दिन शास्त्रों के अनुसार नियमपूर्वक श्राद्ध करने से सैकड़ों वर्षों से अतृप्त आत्माओं को मोक्ष प्राप्त होता है। परंतु प्रत्येक कार्य को एक उचित विधि से करने से ही पुण्य प्राप्त होता है।
अतएवं श्राद्ध कार्य के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन कर ही श्राद्ध क्रिया उचित प्रकार से की जा सकती है और पितरों को शांति व मोक्ष प्राप्त होता है।
नियम इस प्रकार हैं:-
1. दूसरे के निवास स्थान या भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
2. श्राद्ध में पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मण द्वारा पूजा कर्म करवाए जाने चाहिए।
3. ब्राह्मण का सत्कार न करने से श्राद्ध कर्म के सम्पूर्ण फल नष्ट हो जाते हैं।
4. श्राद्ध में सर्वप्रथम अग्नि को भोग अर्पित किया जाता है, तत्पश्चात हवन करने के बाद पितरों के निमित्त पिंड दान किया जाता है।
5. चांडाल और सूअर श्राद्ध के संपर्क में आने पर श्राद्ध का अन्न दूषित हो जाता है।
6. रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
7. संध्याकाल व पूर्वाह्न काल में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए।