Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सर्वपितृ अमावस्या पर क्यों पढ़ते हैं गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ?

हमें फॉलो करें सर्वपितृ अमावस्या पर क्यों पढ़ते हैं गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ?

अनिरुद्ध जोशी

आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध अमावस्या कहते हैं। यह दिन पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है। अगर आप पितृपक्ष में श्राद्ध कर चुके हैं तो भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना जरूरी होता। सभी जाने और अनजाने पितरों हेतु इस दिन निश्चित ही श्राद्ध किया जाना चाहिए। इस दिन आप गीता के दूसरे और सातवें पाठ को पढ़ने का विधान है।
 
 
क्यों करते हैं गीता पाठ : आप चाहे तो संपूर्ण गीता का पाठ करें या सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और उन्हें मुक्ति प्रदान का मार्ग दिखाने के लिए गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ करने का विधान भी है।

 
संपूर्ण दूसरा और सातवां अध्याय पढ़ने के लिए आगे क्लिक करें.. 
सांख्ययोग-नामक दूसरा अध्याय
ज्ञानविज्ञानयोग- सातवाँ अध्याय
 
क्या है सातवें अध्याय में?
गीता के सप्तम अध्याय ज्ञान-विज्ञान योग में अन्य देवताओं की उपासना के संदर्भ में कहा गया है। यहां प्रस्तुत हैं उसी के कुछ श्लोक।
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः ।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥
भावार्थ : माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते॥15॥
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌ ।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥
भावार्थ : परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥23॥
 
व्याख्या : यहां उन देवताओं की प्रार्थना का विरोध नहीं, जो सचमुच में ही देवता हैं, लेकिन आजकल बहुत से लोग काल्पनिक देवी और देवताओं की पूजा करते हैं। कुछ तो अपने गुरु की ही पूजा और भक्ति करते हैं। बहुत से लोग किसी समाधि, वृक्ष, गाय, दरगाह, बाबा आदि की भी पूजा या प्रार्थना करते हैं। ऐसे मूर्ख लोगों की पूजा या प्रार्थना का फल नाशवान है। लेकिन जो उस एक परम तत्व को मानते हैं उसे वे किसी भी रूप में भजे अंत में उसी को प्राप्त होते हैं और उनका कर्म कभी निष्फल नहीं होता।
 
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्‌ ॥
भावार्थ : बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्मकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं॥24॥
भगवान कृष्ण कहते हैं कि 'मेरे भक्त'। 'मेरे भक्त' का अर्थ यह नहीं कि वे यह कह रहे हैं कि मुझे भजो। वे कह रहे हैं कि उस एक कालरूपी परमेश्वर को भजो। दरअसल, श्रीकृष्‍ण के माध्यम से उस परमेश्वर ने ही अपनी वाणी को कहा। गीता का संपूर्ण गहराई से अध्ययन करने पर यह स्वत: ही ज्ञात हो जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सर्वपितृ अमावस्या के 5 शुभ मंत्र, पितृ होंगे प्रसन्न