* श्राद्ध कर्म में आवश्यक है पवित्रता एवं सावधानी
पितृ पक्ष प्रारंभ हो गया है। पितृ पक्ष के पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों की संतुष्टि के लिए संयमपूर्वक विधि-विधान से पितृ यज्ञ कर रहे हैं। लेकिन इसमें कई महत्वपूर्ण बातें होती है। जिनका पालन करना आवश्यक होता है। आइए देखते हैं श्राद्धकर्ता के लिए जरूरी सावधानियां -
श्राद्ध में पवित्रता का महत्व :
'त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्रः कुतपस्तिलाः।
वर्ज्याणि प्राह राजेन्द्र क्रोधोऽध्वगमनं त्वरा।'
- अर्थात् दौहित्र पुत्री का पुत्र, कुतप मध्या- का समय और तिल ये तीन श्राद्ध में अत्यंत पवित्र हैं और क्रोध, अध्वगमन श्राद्ध करके एक स्थान से अन्यत्र दूसरे स्थान में जाना एवं श्राद्ध करने में शीघ्रता ये तीन वर्जित हैं।
श्राद्धकर्ता के लिए सावधानी :
* जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं, उन्हे पूरे पंद्रह दिनों तक क्षौरकर्म नहीं कराना चाहिए।
* तेल, उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
* प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करना चाहिए।
* पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
* 'दन्तधावनताम्बूले तैलाभ्यडमभोजनम्।
रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत्सप्त वर्जयेत्।'
- अर्थात् दातौन करना, पान खाना, तेल लगाना, भोजन करना, स्त्री प्रसंग, औषध सेवन और दूसरे का अन्न ये सात श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं।
* श्राद्ध में ब्राह्मण :
'सर्वलक्षणसंयुक्तैर्विद्याशीलगुणान्वितैः।
पुरुषत्रयविख्यातैः सर्वं श्राद्धं प्रकल्पयेत्।'
- अर्थात् समस्त लक्षणों से संपन्न विद्या, शील एवं सद्गुणों से संपन्न तथा तीन पुरुषों से विख्यात सद्गुणों से श्राद्ध संपन्न करें।
* श्राद्ध का अन्न
'यदन्नं पुरुषोऽश्नाति तदन्नं पितृदेवताः।
अपकेनाथ पकेन तृप्तिं कुर्यात्सुतः पितुः'
- अर्थात् मनुष्य जिस अन्न को स्वयं भोजन करता है, उसी अन्न से पितृ और देवता भी तृप्त होते हैं। पकाया हुआ अथवा बिना पकाया हुआ अन्न प्रदान करके पुत्र अपने पितृ को तृप्त करें।
पंचबलि विधि : गौग्रास के लिए मंडल के बाहर पश्चिम की ओर गोम्यः नम पढ़ते हुए सव्य होकर गाय के लिए भोजन पत्तेपर दे-
'ॐ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः।
प्रतिगृ-न्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः इदं गोभ्यो न मम।'
श्वानबलि- कुत्ते के लिए जनेऊ को कण्ठीकर निम्नलिखित मंत्र से कुत्तों को बलि दें-
'द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ।
ताभ्यामत्रं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ।'
इदं भ्यां न मम
काकबलि- कौए के लिए अपसव्य होकर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर कौओं को भूमि पर अन्न दें-
ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा।
वायसाः प्रतिर्गृन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम्
इदमंत्र वायसेम्यो न मम।
देवादिबलि- पत्ते पर सव्य होकर निन्म लिखित मंत्र पढ़कर देवता आदि के लिए अन्न दें-
ॐ देवा मनुष्याः पशवो वयांसि।
सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः।
प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता
ये चात्रमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्।
इदमंत्रं देवादिभ्यो न मम।
पिपीलिकादिबलि- चींटियों के लिए इसी प्रकार निम्नालिखित मंत्र से चींटी आदि को बलि दें-
'पिपीलिकाः कीटपतड़काद्या। बुभुक्षिताः कर्मनिबन्धबद्धाः।
तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयात्रं।
तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु इदमंत्र पिपीलिकादिभ्यो न मम।'
पंचबलि देने के बाद एक थाली में सभी रसोई परोसकर अपसव्य और दक्षिणाभिमुख होकर निम्न संकल्प करें -
'महालयाद्धे अक्षयतृप्त्यर्थमिदमचनं तस्मै (तस्यै वा) स्वधा।'
यह संकल्प करने के बाद ॐ इदमन्नम्, इमा आपः, इदमाज्यम्, इदं हविः इस प्रकार बोलते हुए अन्न, जल, घी तथा पुन: अन्न को दाहिने हाथ के अंगूठे से स्पर्श करें। इस प्रकार विधिपूर्वक श्राद्ध की पूर्ति करने से पितृ को तृप्ति मिलती है। समयाभाव होने पर भोजन बनाकर गौग्रास देकर कर्म की पूर्ति की जा सकती है।