जो पुरुष श्राद्ध का दान देकर अथवा श्राद्ध में भोजन करके स्त्री के साथ समागम करता है वह दोषी होता है...उसके पितृ उस दिन से लेकर एक महीने तक उसी के वीर्य में निवास करते हैं इसलिए भूलकर भी उस दिन स्त्री के साथ समागम नहीं करना चाहिए।
इन दिनों पान नहीं खाना चाहिए। बॉडी मसाज या तेल की मालिश नहीं करना चाहिए। किसी और का खाना नहीं खाना चाहिए।
इन दिनों खाने में चना, मसूर, काला जीरा, काले उड़द, काला नमक, राई, सरसों आदि वर्जित मानी गई है अत: खाने में इनका प्रयोग ना करें ।
श्राद्ध के दौरान क्षौर कर्म यानी बाल कटवाना, शेविंग करवाना या नाखून काटना आदि भी नहीं करना चाहिए।
श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है।
भैंस, हिरणी, ऊंटनी, भेड़ और एक खुर वाले पशु का दूध भी वर्जित है, पर भैंस का घी वर्जित नहीं है।
श्राद्ध में करने योग्य- कुशा, श्राद्धस्थली की स्वच्छता, उदारता से भोजन आदि की व्यवस्था और ब्राह्मण की उपस्थिति।
श्राद्ध के लिए उचित बातें - सफाई, शांत चित्त, क्रोध न करें और धैर्य से पूजन-पाठ करें। हड़बड़ी व जल्दबाजी नहीं करें।
श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य हैं - तिल, चावल, जौ, जल, मूल (जड़युक्त सब्जी) और फल।
3 चीजें शुद्धिकारक हैं - पुत्री के पुत्र को भोजन, तिल और नेपाली कम्बल।
श्राद्ध के दिनों में तांबे के बर्तनों का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।
पितरों का श्राद्ध कर्म या पिंडदान आदि कार्य करते समय उन्हें कमल, मालती, जूही, चम्पा के पुष्प अर्पित करें।
श्राद्धकाल में पितरों के मंत्र (ऊँ पितृभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम: पितामहेयभ्य: स्वधायीभ्य स्वधा नम: प्रपितामहेयभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम:, अक्षंतपितरोमी पृपंतपितर: पितर: शुनदद्धवम्) का जप करें।