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सोमवती अमावस्या पर श्राद्ध का कई गुना मिलेगा फल

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पं. सोमेश्वर जोशी

श्राद्ध पक्ष में सोमवती अमावस्या : जानिए महत्व 
 
3 साल बाद बना विशेष योग 
 
तर्पण, पितृदोष, श्राद्ध का कई गुना मिलेगा फल
 
 
श्राद्ध पक्ष में 12 अक्टूबर, सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व माना गया है। श्राद्ध पक्ष 12 अक्टूबर को16 दिन पूरे करेगें। इस बार 3 सालों के बाद सोमवती अमावस्या के आने से 12 अक्टूबर को विशेष पुण्य का दिन माना गया है।
 
श्राद्ध पक्ष में सोमवती अमावस्या का आना विशेष दान-पुण्य का महत्व रखता है। इस दौरान सुबह 11 बजे तक पितरों की पूजा-अर्चना कर 12 बजे ब्राह्मण को भोजन करवाया जाता है, लेकिन इस बार पितरों की तृप्ति के लिए दोपहर 12 से अपराह्न 4 बजे तक माना गया है। 
 
पितृपक्ष में अंतिम 30 वर्षों में ऐसा 7वीं बार हुआ है, जब श्राद्ध पक्ष में सोमवती अमावस्या आई हो और अगला योग 13 साल बाद 2028 में बनेगा। खास यह है कि अमावस्या पूरे दिन रहेगी। अमावस्या के दिन सूर्य-चंद्र दोनों एक सीध में रहते हैं। सूर्य-चंद्र दोनों देवता हैं और अमावस्या पितृ कार्य का दिन है।

इस अमावस्या का विशेष ज्योतिषीय महत्व इसलिए भी है, क्योंकि इस बार न केवल सूर्य और चन्द्र कन्या राशि में हैं, बल्कि राहु और बुध भी सूर्य और चन्द्र उनकी उच्च कन्या राशि के साथ युति करके दो ग्रहण के योग बनाते हैं जिससे तर्पण, पितृदोष, श्राद्ध का कम से कम 4 गुना फल मिलेगा। 

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सोमवती अमावस्या 3 साल के उपरांत आने पर इस बार पितरों को तृप्त करने के समय का योग दोपहर 12 से अपराह्न 4 बजे तक माना गया है। अमावस्या तिथि सूर्योदय से दूसरे दिन सुबह 5.36 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार सोमवार को जब भी अमावस्या हो और वह शाम को रहे तो वह सहस्र गोदान का पुण्य प्रदान करती है।
 
जिन्हें तिथि ज्ञात नहीं, उनका श्राद्ध अमावस्या को

जिन्हें तिथि ज्ञात नहीं, उनका श्राद्ध अमावस्या को
 
श्राद्ध पक्ष के दौरान अपने पितरों के निमित्त जो व्यक्ति भोजन, फल व वस्त्र के साथ-साथ श्रद्धानुसार दक्षिणा दान करता है, उससे संतुष्ट होकर उनके पितर साधक को यश, संपदा तथा दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ-साथ पितरों की शांति के लिए तिल, जौ, चावल का पिंडदान भी किया जाना श्रेष्ठ माना गया है।

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आमतौर पर सोमवती अमावस्या 3 साल में एक बार आती है, परंतु इस दिन पितरों को विशेष रूप से तृप्त करने के साथ-साथ प्रग पितरों को संतुष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ शुभ समय माना जाता है। 
 
श्राद्ध वाले दिन पीपल में जल चढ़ाकर तिलांजलि दिया जाना विशेष पुण्य का योग है। श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों की पूजा करने के साथ-साथ ब्राह्मणों को पितरों के निमित्त भोजन भी करवाया जाता है। शास्त्रों में माना गया है कि ऐसा करने से हमारे पितर खुश रहते हैं।
 
सोमवार का योग पितरों के साथ देवताओं की कृपा भी प्रदान करता है। पीपल और भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। इससे आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, वहीं पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्धकर्म से उनका आशीर्वाद मिलेगा।

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