Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

समाज के उपेक्षितों को शरण देते हैं शिव

हमें फॉलो करें समाज के उपेक्षितों को शरण देते हैं शिव
webdunia

ललि‍त गर्ग

देवों के देव शिव की भक्ति के लिए श्रावण मास का विशेष महत्व है। शास्त्रों में वर्णित है कि श्रावण महीने में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं इसलिए यह समय भक्तों और साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। इस समय सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं इसलिए श्रावण के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।


 
श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता। इसके साथ जुड़े समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। इस माह की प्रत्येक तिथि किसी-न-किसी धार्मिक महत्व के साथ जुड़ी हुई होती है। 
 
शास्त्रों में श्रावण के महात्म्य पर विस्तारपूर्वक उल्लेख मिलता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव-शंकर का गहरा संबंध है। इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है। इसका हर दिन व्रत और पूजा- पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है। 
 
श्रावण मास की अनेकानेक विशेषताएं एवं अलौकिकताएं हैं। मनीषियों का कहना है कि समुद्र मंथन भी श्रावण मास में ही हुआ। इस मंथन से 14 प्रकार के तत्व निकले। उसमें एक कालकूट विष भी निकला, उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्मांड जलने लगा। 
 
इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्रार्थना करने लगे, तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरुद्ध कर लिया। इस प्रकार इनका नाम 'नीलकंठ' पड़ा। इसके बाद देवताओं ने भगवान शिव को जहर के संताप से बचाने के लिए उन्हें गंगाजल अर्पित किया।
 
इसके बाद से ही शिवभक्त श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होते हैं तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है।
 
इन दिनों में अनेक प्रकार से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है, जो भिन्न-भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है, जैसे कि जल से वर्षा और शीतलता की प्राप्ति होती है। दुग्ध अभिषेक एवं घृत से अभिषेक करने पर योग्य संतान की प्राप्ति होती है। ईख के रस से धन-संपदा की प्राप्ति होती है। कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है। दधि से पशुधन की प्राप्ति होती है और शहद से अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 
 
इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। इस महीने में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है और जीवनरक्षक माना गया है।
 
भगवान शिव को श्रावण का महीना प्रिय होने का एक अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव श्रावण के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष श्रावण माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोकवासियों के लिए शिवकृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
 
 
webdunia

 


भगवान शिव-शंकर करोड़ों सूर्य के समान दीप्तिमान हैं जिनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है। नीले कंठ वाले, अभीष्ट वस्तुओं को देने वाले हैं। तीन नेत्रों वाले यह शिव काल के भी काल, महाकाल हैं। कमल के समान सुन्दर नयनों वाले, अक्ष माला और त्रिशूल धारण करने वाले अक्षर-पुरुष हैं।
 
यदि वे क्रोधित हो जाएं तो त्रिलोक को भस्म करने के शक्ति रखते हैं और यदि किसी पर दया कर दें तो त्रिलोक का स्वामी भी बना सकते हैं। यह भयावह भवसागर पार कराने वाले समर्थ प्रभु हैं। भोलेनाथ बहुत ही सरल स्वभाव, सर्वव्यापी और भक्तों से शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव हैं। उनके सामने मानव क्या, दानव भी वरदान मांगने आए तो उसे भी मुंहमांगा वरदान देने में वे पीछे नहीं हटते हैं। 
 
भगवान शिव के प्रति जन-जन की भक्ति और निष्ठा, उनका समर्पण और उनकी स्तुति अनायास नहीं है, बल्कि भक्तों ने शिव की भक्ति में वह सब कुछ पाया है, जो उन्होंने चाहा है। यह उस अनादि-अनंत, शांतस्वरूप पुरुषोत्तम शिव की भक्ति और वंदना का ही परिणाम है कि व्यक्ति अपनी परेशानियों, असाध्य बीमारियों से उबरकर स्वस्थ बन जाता है, अपने भौतिक जीवन में हर कामनाओं को पूर्ण होते हुए देखता है।
 
वस्तुत: अपने विरोधियों एवं शत्रुओं को मित्रवत बना लेना ही सच्ची शिवभक्ति है। जिन्हें समाज तिरस्कृत करता है उन्हें शिव गले लगाते हैं तभी तो भक्त भगवान शिव की शरण में आकर निश्चिंत हो जाता है, तभी तो अछूत सर्प उनके गले का हार है, अधमरूपी भूत-पिशाच शिव के साथी एवं गण हैं। 
 
शिव सच्चे पतित-पावन हैं। उनके इसी स्वभाव के कारण देवताओं के अलावा दानव भी शिव का आदर करते हैं और भक्ति करते हैं। समाज जिनकी उपेक्षा करता है, शंकर उन्हें आमंत्रित करते हैं। ऐसे पालक रुद्रदेव की शरण में भक्त स्वयं को निश्चिंत, सुखी व समृद्ध महसूस करता है। हर व्यक्ति शिव की स्तुति एवं भक्ति करते हुए अपने जीवन को सार्थक मानता है, क्योंकि भगवान शिव अपने भक्तों को बहुत फल देने वाले हैं तथा उनकी हर मनोकामना को पूरा करने वाले हैं। 
 
जो अनुपम ऐश्वर्यशाली होते हुए भी गजचर्मधारी हैं, अर्द्ध-शरीर में पत्नी को धारण करने पर भी सांसारिक विषयों से मन को विरक्त किए हुए हैं और यतियों में अग्रगण्य हैं, जो अपने अष्ट रूपों से संपूर्ण जगत का पालन करते हुए अभिमानयुक्त नहीं हैं, निरभिमानी हैं, वे हमें श्रेष्ठ मार्ग को दिखाने के लिए हमारी तामसी वृत्ति को मिटाते हैं, हमारी बुराइयों को दूर करते हैं। 
 
भगवान शिव जटारूपी वन से निकलती हुई गंगाजी की गिरती हुई धाराओं से पवित्र किए गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारण कर, डमरू के डम-डम शब्दों से मंडित प्रचंड तांडव नृत्य कर इस संसार की आसुरी शक्तियों को ललकारते हैं, वे 'शिव' हम सबका कल्याण करते और हमारी जीवन सृष्टि को उन्नत एवं खुशहाल बनाते हैं।
 
भगवान शिव इस संसार के पालनहार हैं। उनके एक हाथ में वर, दूसरे हाथ में अभय, तीसरे हाथ में अमृत कलश और चौथे हाथ में त्रिशूल है। आपकी कृपा चाहने वाले कोई भक्त आपके ‘वर’ के पात्र बनें, कोई भक्त ‘अभय’ के पात्र बनें और कोई हाथ में स्थित घनीभूत ‘अमृत’ के पात्र बनें और ऐसी पात्रता हर शिवभक्त में उमड़े और शिवभक्ति का एक प्रवाह संपूर्ण संसार में प्रवाहमान बने, यही इस संसार और सृष्टि का उन्नयन और उत्थान कर सकती है। 
 
भारतीय संस्कृति की भांति शिव-परिवार में भी समन्वयकारी गुण दृष्टिगोचर होते हैं। वहां जन्मजात विरोधी स्वभाव के प्राणी भी शिव के प्रताप से परस्पर प्रेमपूर्वक निवास करते हैं। शंकर का वाहन बैल है तो पार्वती का वाहन सिंह, गणेश का वाहन चूहा है तो शिव के गले का हार सर्प एवं कार्तिकेय का वाहन मयूर है। ये सभी परस्पर वैर-भाव छोड़कर सौहार्द एवं सद्भाव से रहते हैं। शिव-परिवार का यह आदर्श रूप प्रत्येक परिवार एवं समाज के लिए प्रेरक है। 
 
भगवान शिव जन-जन की रक्षा करते हैं, भक्तों की रक्षा करते हैं। वे देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहारकर्ता, सर्वव्यापक, कल्याण रूप, चन्द्रमा के समान शुभ्र वर्ण हैं जिनकी गोद में पार्वती, मस्तक पर गंगा, ललाट पर बाल चन्द्रमा, कंठ में हलाहल विष और वक्षस्थल पर सर्पराज शोभित हैं, वे भस्म से विभूषित हैं। जो जगत का भरण करते हैं, पर स्वयं भिक्षु हैं, जो सब प्राणियों को निवास देते हैं, परंतु स्वयं गृहहीन हैं, जो विश्व को ढंकते हैं, परंतु स्वयं नग्न हैं।
 
मान्यता है कि भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति को बहुत मान देते हैं। क्षीर समुद्र का दान करने वाले शिव अपने भक्तों द्वारा दिए गए दुग्ध बिंदु को ग्रहण कर लेते हैं। 3 नेत्रों में सूर्य, चन्द्र और अग्नि को धारण करते हुए भी आप भक्तों द्वारा दिए गए दीपक को स्वीकार कर लेते हैं। वाणियों के उत्पत्ति स्थान होते हुए भी अज्ञानी भक्तों की वाणियों (स्तुतियों) को सुन लेते हैं। विनीतों, भक्तों के आग्रह से आप क्या-क्या नहीं करते?
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भगवान शंकर संबंधी कुछ महत्वपूर्ण सवाल