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क्या आप जानते हैं भगवान शिव की जन्मकुंडली

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

* शिवजी क्यों माने गए हैं देवों के देव महादेव 
* जरूर पढ़ें, क्या कहते हैं भगवान शिव के सितारे

* जानिए, क्या कहती है भगवान शिव की जन्मकुंडली
* भगवान शिव के सितारे, जानिए जन्मकुंडली के सहारे

 
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भगवान आशुतोष, शिवजी, भोलेनाथ, भूतेश्वर, महाकाल, सोमेश्वर आदि कई नामों से जाने जाने वाले भगवान शंकर का जन्म प्राचीन पांडुलिपि से ज्ञात कुंडली के अनुसार मेष लग्न में हुआ है। मेष लग्न अग्नि तत्व प्रधान है

आपके लग्न में मंगल व सूर्य है, दोनों ही अत्यंत तेजस्वी ग्रह है।

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सूर्य पंचम भाव यानी संतान व विद्या भाव का स्वामी है। संहारक भाव अष्टम का स्वामी मंगल लग्न में है। इसके प्रभाव से शिव जी अत्यंत गुस्सैल है। एक बार क्रोध आ जाए तो सृष्टि को कंपा देते हैं।

पंचम यानी विद्या भाव का स्वामी उच्च का होकर लग्न में होने से आप शीघ्र वरदान देने में पीछे नहीं हटते और वह वरदान भी कभी-कभी आपके दुख का कारण भी बनता है। भस्मासुर जैसे कई उदाहरण पुराणों में मिलते हैं।


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उच्च का गुरु चतुर्थ भाव में है ऐसे लोग जनता के बीच प्रसिद्ध होते हैं। इसी वजह से आपने गंगा को जटा में धारण कर वंसुधरावासियों को अमृत रूपी गंगा की सौगात दी।

तृतीय भाव में राहु उच्च का है जो हर शत्रु पर भारी पड़ता है। वैसे तो राहु जिनकी पत्रिका में उच्च का तृतीय भाव में हो उनके शत्रु नहीं होते। चतुर्थ भाव पर मंगल की दृष्टि ने आपको भवन का सुख नहीं दिया।


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शनि दशम में होने से अपने आपमें सशक्त राजयोग है तभी आप महाकाल कहलाए। शनि की उच्च दृष्टि सप्तम भाव पर होने से आपकी जीवन साथी चिरस्थायी मां पार्वतीजी रही।

उच्च का शुक्र द्वादश में नीच के बुध के साथ होने से ऐश्वर्य भरपूर होने पर भी आपने सारा वैभव बांट दिया। अष्टमेश मंगल लग्न में दुखद ही रहता है लेकिन प्रबल साहसी भी बनाता है। अष्टम भाव श्मशान का भी है तभी भस्म रमाए रहते हैं।

उच्च का केतु नवम में व नवमेश चतुर्थ में उच्च का होने से उच्च कोटी का बनाया। आयु भाव पर गुरु की मित्र दृष्टि मंगल की वृश्चिक राशि पर व मंगल की स्वदृष्टि अष्टम पर पड़ने से अजय अमर हो गए। आप साक्षात भगवान है यदि किसी इंसान की कुंडली में ऐसे ग्रहयोग हो तो वह भी कम से कम महान तो होगा ही।

(समाप्त)

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