श्रावण मास शिव आराधना के लिए प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण श्रावण मास में केवल शिवालय में ही नहीं अपितु घर-घर में शिव अभिषेक होता है। अक्सर देखने में आता है कि अभिषेक के उपरान्त श्रद्धालुगण पार्थिव शिवलिंग पर अर्पित की जाने वाली माला, पुष्प व बिल्व पत्रों का उचित सम्मान नहीं करते। यही हाल शिवलिंग के अभिषेक हेतु उपयोग में लाए गए दुग्ध का होता है। किसी भी देव के अर्चाविग्रह पर अर्पित किए जाने के उपरान्त उतारे गए पुष्पों व मालाओं को 'निर्माल्य' कहते हैं।
शास्त्रों में यह 'निर्माल्य' बड़ा ही पवित्र माना गया है। इस निर्माल्य को अपवित्र स्थानों में विसर्जित नहीं किया जाना चाहिए और ना ही इसका पैर से स्पर्श होना चाहिए। बड़ी प्रसिद्ध कथा है कि पुष्पदंत नामक गंधर्व का पैर भगवान शिव के निर्माल्य से स्पर्श हो गया था। इसे महान पाप समझकर पुष्पदन्त ने शिवजी स्तुति की, यह स्तुति महिम्न स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
अत: हमें "निर्माल्यों" का उचित आदर करना चाहिए और उन्हें किसी पवित्र स्थान पर विसर्जित करना चाहिए। हमारे यहां सदियों से निर्माल्य को पवित्र नदियों में विसर्जित करने की परम्परा रही है। प्राचीन काल में जब जनसंख्या कम थी और नदियों प्रवाह था तब इसे उचित कहा भी जा सकता था किन्तु वर्तमान समय में नदियों में निर्माल्य आदि के विसर्जन से प्रदूषण ही होता है। हमारा मत है कि निर्माल्य को एकत्रित कर किसी पवित्र भूमि गड्ढा खोदकर गड़ा दें तत्पश्चात् उस पर एक पौधा लगा दें। भगवान के निर्माल्यों से अभिसिंचित यह पौधा जब वृक्ष बनेगा तो अपने आस-पास के वातावरण में शुद्ध हवा के साथ-साथ आध्यात्मिकता का संचार भी करता रहेगा।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
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