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Sawan shivratri 2024: सावन मास की शिवरात्रि 2 या 3 अगस्त को, जानें सही दिनांक, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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WD Feature Desk

, बुधवार, 31 जुलाई 2024 (17:10 IST)
When is Shravan Shivratri 2024: फाल्गुन माह की कृष्‍ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि और श्रावण माह की कृष्‍ण चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। श्रावण मास की चतुर्दशी को शिवरात्रि भी धूम-धाम से मनाई जाती है। इस शिवरात्रि को लेकर कई लोगों के मन में कंफ्‍यूजन है कि यह 2 अगस्त को है या कि 3 अगस्त 2024 को? आओ जानते हैं सही दिनांक और शुभ मुहूर्त सहित पूजा विधि।ALSO READ: Sawan somwar 2024: सावन माह की शिवरात्रि कब है, जानें पूजा के शुभ मुहूर्त और अचूक उपाय
 
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 02 अगस्त 2024 को दोपहर 03:26 बजे से प्रारंभ।
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 03 अगस्त 2024 को दोपहर 03:50 बजे बजे समाप्त।
चूंकि शिवरात्रि की पूजा का महत्व रात में और खासकर निशिथ काल में रहता है इसलिए यह 2 अगस्त 2024 शुक्रावार को रहेगी। 
 
निशिथ काल पूजा समय:- 
02 अगस्त की रात को 12:06 से 12:49 तक (अंग्रेजी टाइम के अनुसार 3 अगस्त रहेगी).
03 अगस्त 2024 को, शिवरात्रि पारण समय- प्रात: 05:44 AM से 03:49 PM.
 
2 अगस्त 2024 शिवरात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त:-
ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:19 से 05:01 तक।
प्रातः सन्ध्या: प्रात: 04:40 से 05:43 तक।
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 से 12:54 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:42 से 03:36 तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:11 से 07:32 तक।
सायाह्न सन्ध्या: शाम 07:11 से 08:14 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग: 2 अगस्त सुबह 10:59 से 3 अगस्त प्रात: 05:44 तक रहेगा।
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शिवरात्रि पूजा विधि:-
  • शिवरात्रि के एक दिन पहले यानी त्रयोदशी तिथि के दिन केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। 
  • शिवरात्रि के दिन सुबह नित्य कर्म करने के बाद पुरे दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  • इसके बाद प्रात:काल में, अभिजीत मुहूर्त में, प्रदोष काल में और निशिथ काल में पूजा करना चाहिए।
  • पूजा के लिए पहले पूजा सामग्री एकत्रित कर लें। जैसे चंदन, भस्म, नैवेद्य, बेलपत्र, दूध, जल, तांबा का लोटा, पंचामृत, हार, फूल आदि।
  • अब एक स्वच्छ पाट पर एक तांबे तरभाणे में शिवलिंग को स्थापित करें।
  • शिवलिंग का पहले मंत्रों के साथ जलाभिषेक करें, फिर दुग्धाभिषेक या पंचामृत अभिषेक करें। इसके बाद पुन: जलाभिषेक करें।
  • जलाभिषेक के बाद शिवजी को चंदन लगाएं। फिर बेलपत्र और फूल आदि पूजा सामग्री अर्पित करें।
  • इसके बाद नैवेद्य अर्पित करें और अंत में आरती करें।
  • आरती के बाद सभी को प्रसाद का वितरण करें।
  • अगले दिन स्नानादि के पश्चात् अपना व्रत तोड़ना चाहिए या चतुर्दशी तिथि अस्त होने के पहले व्रत खोल लेना चाहिए।

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