प्रत्येक माह में 2 चतुर्दशी और वर्ष में 24 चतुर्दशी होती है। चतुर्दशी को चौदस भी कहते हैं। इस दिन व्रत और पूजा करने का बहुत महत्व माना गया है। वैशाख शुक्ल और श्रावण माह की चतुर्दशी को शिव चतुर्दशी कहते हैं। आओ जानते हैं चतुर्दशी की 3 खास बातें।
गर्ग संहिता के मत से-
उग्रा चतुर्दशी विन्द्याद्दारून्यत्र कारयेत्।
बन्धनं रोधनं चैव पातनं च विशेषतः।।
1. चतुर्दशी को को करें इनकी पूजा : चतुर्दशी (चौदस) के देवता हैं शंकर। इस तिथि में भगवान शंकर की पूजा करने से मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कर बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है। इस तिथि की दिशा पश्चिम है। पश्चिम के देवता शनि हैं। चतुर्दशी तिथि चन्द्रमा ग्रह की जन्म तिथि है। चतुर्दशी की अमृतकला को स्वयं भगवान शिव ही पीते हैं।
2. छह चतुर्दशी का महत्व : छह चतुर्थियों का खास महत्व है- भाद्रपद शुक्ल की अनंत चतुर्दशी, कार्तिक कृष्ण की कृष्ण, रूप या नरक चतुर्दशी, कार्तिक शुक्ल की बैकुण्ठ चतुर्दशी, वैशाख शुक्ल माह की विनायक चतुर्दशी एवं शिव चतुर्दशी और श्रावण माह की शिव चतुर्दशी का खासा महत्व है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत (विष्णु) की पूजा का विधान होता है। इस दिन अनंत सूत्र बांधने का विशेष महत्व होता है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी आती है। इस दिन यमदेव की पूजा का विधान है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन पूजा, पाठ जप, एवं व्रत करने से श्रद्धालु को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। विनायक चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की पूजा होती है।
3. चतुर्दशी के निषेध कार्य : चतुर्दशी तिथि यह रिक्ता संज्ञक है एवं इसे क्रूरा भी कहते हैं। यह उग्र अर्थात आक्रामकता देने वाली तिथि हैं। इसीलिए इसमें समस्त शुभ कार्य वर्जित है। अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है।