अच्छा है कि आप श्रावण के माह में व्रत न रखें, क्योंकि आप किसी भी तरह के नियम पालने में सक्षम नहीं है। कुछ लोग श्रावण के सोमवार को ही उपवास या व्रत रखते हैं जोकि उचित नहीं है। सावन के माह में सोमवार सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। लेकिन पूरे माह कठोर व्रत रखने का विधान है। इसके लिए आप आठ प्रहर में से एक सायंकाल को व्रतबंध तोड़ सकते हैं या संपूर्ण माह इसी काल में एक बार फलाहार ग्रहण करके व्रत जारी रख सकते हैं।
चतुर्मास में श्रावण माह सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह कठोर व्रत रखने के बाद भले ही फिर पूरे वर्ष व्रत न रखेंगे तो चलेगा, लेकिन यह मान सभी तरह के बंधनों से मुक्ति होने का माह है।
आठ प्रहर के नाम : दिन के चार प्रहर- पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह और सायंकाल। रात के चार प्रहर- प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा। प्रत्येक प्रहर में गायन, पूजन, जप और प्रार्थना का महत्व है।
क्यों है सावन मास का महत्व : एक कथा के अनुसार जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने सावन के महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।