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महाभारत में अक्रूरजी कौन थे, जानिए उनकी 7 रोचक बातें

हमें फॉलो करें महाभारत में अक्रूरजी कौन थे, जानिए उनकी 7 रोचक बातें

अनिरुद्ध जोशी

श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत में अक्रूरजी का कई जगहों पर उल्लेख मिलता है। अक्रूरजी कौन थे? क्या है उनके जीवन की कथा? यह बात बहुत कम ही लोग जानते हैं। आओ जानते हैं अक्रूरजी के संबंध में रोचक जानकारी।
 
 
1. अक्रूरजी भगवान श्रीकृष्ण के काका थे। उन्हें वसुदेवजी का भाई बताया गया है। इनकी माता का नाम गांदिनी तथा पिता का नाम श्वफल्क था। अक्रूर की पत्नी का नाम उग्रसेना था। 
 
2. अक्रूरजी कंस के पिता उग्रसेन के दरबार में एक दरबारी के रूप में कार्य करते थे। जब कंस ने उग्रसेन को बंदी बना लिया तो अक्रूरजी की शक्तियां कमजोर हो गई। लेकिन अक्रूरजी वहां से भागे नहीं और उन्होंने गुप्त रूप से उग्रसेन के समर्थकों को एकजुट बनाए रखा।
 
3. मथुरा में कंस के अत्याचर बढ़ने के बाद अक्रूरजी ने गुप्त रूप से सभी वृष्णीवंशी, कुकुरवंशी आदि यादव सरदारों को एकत्रित करने के कार्य करते हैं। वे ही वसुदेवजी की पहली पत्नी माता रोहिणी को मथुरा से निकालकर गोकुल में माता यशोदा के यहां छोड़कर आते हैं।
 
4. अक्रूरजी बालकृष्ण को महज एक बालक ही मानकर हमेशा उनकी रक्षा में लगे रहते थे। उन्होंने कृष्‍ण की बाललीलाओं के किस्से सुन रखे थे परंतु उन्हें इस पर विश्वास नहीं होता था। 
 
5.जब नारद मुनि द्वारा कंस को यह पता चला कि कृष्ण देवकी का तथा बलराम रोहिणी का पुत्र है तो उसने अपनी योजना के तहत अक्रूरजी को एक समारोह में आने का निमं‍त्रण देकर दोनों ही बालक को बुलाया। अक्रूरजी श्रीकृष्ण और बलराम को वृंदावन से मथुरा के लिए निकले। रास्ते में उन्होंने दोनों भाइयों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे थे। श्रीकृष्‍ण ने कहा कि अक्रूरजी आप व्यर्थ ही हमारी चिंता कर रहे हैं। परंतु अक्रूरजी ने कहा कि नहीं तुम अभी बालक हो, तुम्हारी चिंता करना मेरी जिम्मेदारी है। 
 
4. मुथरा के मार्ग में मथुरा और वृन्दावन के बीच में ब्रह्मह्रद नामक स्थान पर जब अक्रूजी नदी में स्नान के लिए रुके तो नदी के भीतर डुबकी लगाते वक्त उन्हें श्रीकृष्‍ण के दिव्य दर्शन हुए। वह घबराकर बाहर निकले तो उन्होंने तट के किनारे श्रीकृष्‍ण को मुस्कुराते हुए देखा। वे कुछ समझ नहीं पाए और फिर से उन्होंने जल में डुबकी लगाई तो भीतर श्रीकृष्ण बलराम के साथ बैठे हुए नजर आए। बाद में अक्रूरजी समझ गए कि मैं जिस बालक की रक्षा की चिंता कर रहा हूं वह तो जगत की रक्षा करने वाले श्रीहरि विष्णु है। अक्रूरजी श्रीकृष्‍ण का दिव्य रूप देखकर रोने लगे और उनके चरणों में गिर पड़े और कहने लगे कि अब मुझे आपकी कोई चिंता नहीं रही।
 
5. ब्रह्म एवं श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अक्रूर को हस्तिनापुर भेजा था। अक्रूर ने लौटकर बताया कि किस तरह धृतराष्ट्र के पुत्र पांडवों के प्रति अन्याय कर रहे हैं। अक्रूरजी ने श्रीकृष्ण की बुआ कुंती के बारे में भी बताया। कुंती सबसे अधिक श्रीकृष्ण को याद करती थी।
 
6. कहते हैं कि सत्राजित की स्यमंतक मणि अक्रूरजी के पास ही थी। वे इसे लेकर काशी चले गए थे। अक्रूर जी के चले जाने के कारण द्वारका में अकाल पड़ गया था तो श्रीकृष्ण के कहने पर वे वापस आए थे। कहते हैं कि यह मणि जिसके पास रहती है वहां समृद्धि और खुशियां रहती हैं। श्रीकृष्ण के उपर स्यमंतक मणि चोरी का आरोप था। जब अक्रूरजी वो मणि लेकर आए तब उन्होंने इसे सार्वजनिक करके अपने ऊपर लगे आरोप का खंडन किया था।
 
7. अक्रूर की मृत्यु के उपरांत इनकी पत्नियां वन में तपस्या करने के लिए चली गईं थीं। श्रीकृष्ण के पौत्र वज्र ने उन्हें रोकने का प्रयास किया था।

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