निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 14 मई के 12वें एपिसोड में कंस से मिलने के बाद नंदरायजी वसुदेवजी से मिलने चले जाते हैं। फिर जब कंस को यह पता चल जाता है कि यशोदानंदन ही विष्णु है तो वह चाणूर से कहता है कि हमें उसकी हत्या करने के लिए बकासुर की बहन पूतना को भेजना चाहिए। महर्षि दुर्वासा की कृपा से वह बहुतसी मायावी विद्या जानती है।
उधर, नंदजी जाकर वसुदेवजी और देवकी माता से मिलते हैं और कंस से मिलने एवं रोहिणी एवं यशोदा की बातें बताते हैं।
इधर, कंस कहता है कि अभी नंदरायजी मथुरा में ही वसुदेवी के यहां है। हम चाहते हैं कि उनके रात्रि में घर पहुंचने से पहले ही पूतना अपना काम कर लें। तभी पूतना आकाशमार्ग से आकार कंस के पास उपस्थित हो जाती है। कंस कहता है कि आप गोकुल आओ और नंदराय के बालक की हत्या कर दो। तब पूतना कहती है एक नन्हें से बालक की हत्या, क्या बस इतनासा ही काम है भैया? कंस कहता है कि वह नन्हा सा बालक नहीं है स्वयं विष्णु है। जाओ, उसका वध कर दो। तब पूतना कहती है कि मेरे स्तनों का दूध पीते ही वह मर जाएगा। यह कहकर पूतना आज्ञा लेकर वहां से चली जाती है।
वहां जाकर वह एक देवी का वेश धरकर कक्ष में पहुंचकर पालने में सोए बालक को निहारने लग जाती है। यशोदा और रोहिणी उसे देखकर ठीठक जाती है। माता यशोदा पूछती है देवी आप कौन हैं? कहां से पधारी हैं? और यहां आने का क्या प्रयोजन हैं?
तब देवी बनी पूतना कहती हैं कि नंदरानी मेरा प्रयोजन तो केवल आपके लल्ला के दर्शन करना है। यह सुन और देखकर पालने में लेटे बालकृष्ण मुस्कुराने लगते हैं। तब पूतना कहती हैं कि मैं मथुरा की रहने वाली हूं और मेरे पति एक विद्वान ब्राह्मण है। उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखकर मुझे बतलाया की नंदराय के यहां एक महान आत्मा ने जन्म लिया है। जिसका दर्शन बड़ा ही मंगलकारी है। इसीलिए मैं यहां चली आई।...यह सुनकर रोहिणी कहती है स्वागत है। आसन पर विराजिए। तब पूतना कहती है धन्यवाद। पूतना आसन पर बैठकर कहती हैं कि मैं ब्रह्मण पत्नी हूं इसलिए कोई भेंट तो नहीं दे सकती लेकिन तेरे बालक को आशीर्वाद जरूर दे सकती हूं। यह सुन और देखकर बालकृष्ण फिर मुस्कुराते हैं।
मेरे पति के कारण मेरे पास दो सिद्धियां हैं। इनमें से एक तो ये है कि मेरा आशीर्वाद कभी निष्फल नहीं होता। ला तेरे ल्ल्ला को मेरी गोद में दे दें इसे में लम्बी आयु का वरदान दे दूंगी। यह सुनकर माता यशोदा अपने लल्ला को पालने में से उठाकर देवी बनी पूतना की गोद में रख देती है।
पूतना लल्ला के सिर से पैर तक शरीर पर हाथ फेरते हुए मंत्र पढ़ने लग जाती है। बालकृष्ण मुस्कुराते हुए पूतना को देखते हैं। फिर पूतना कहती है कि तुम्हारा ये बालक तो देवलोक से आया जान पड़ता है। यशोदा रानी मैंने कहा था कि मेरे पास दो सिद्धियां है तो उनमें से दूसरी ये है कि मेरे स्तनों से निरंतर अमृत रस झरता रहता है जिसके पीने से तेरा पुत्र अमर हो जाएगा। अत: मैं इसकी धाय बनकर इसे अपना दूध पिला देती हूं। यह सुनकर यशोदा और रोहिणी और भी प्रसन्न हो जाती हैं। बालकृष्ण मुस्कुराते हैं।
तब पूतना विषभरा दूध पिलाने लग जाती है। बालकृष्ण दूध पीने लगते हैं। तभी पूतना बैचेन होने लगती है। बालक तेजी से दूध पीने लगता है। पूतना जोर से चीखती है और बालक को अपने स्तनों से दूर करने की कोशिश करती हैं। यह दृश्य देखकर यशोदा और रोहिणी आश्चर्य करती हैं कि एकदम से क्या हुआ?
पूतना चीखते चीखते अपने असली रूप में आ जाती है। यह देखकर सभी भयभीत हो जाते हैं। यशोदा मां कहती हैं मेरे लल्ला को बचाओ। रोहिणी भी चिल्लाती है। पूतना का रूप बढ़ता जाता है और वह अपने स्तनों से बालक को हटाने का असफल प्रयास करती रहती हैं। वह बालक को लेकर बाहर निकलकर आकाश में उड़ने लगती है। यशोदा, रोहिणी आदि सभी महिलाएं चीखते हुए उसके पीछे दौड़ती हैं। उनके पीछे पूरा गांव दौड़ने लगता है।
पूतना कराहते हुए चीखती रहती है। अंतत: वह भूमि पर गिरकर मर जाती है। दूध पीने के बाद बालकृष्ण उसकी छाती पर बैठ जाते हैं। सभी लोग वहां पहुंचते हैं। यशोदा और रोहिणी कहती हैं कोई बचाओ मेरे लल्ला को। तब एक ग्रामीण पूतना की छाती पर चढ़कर जैसे-तैसे लल्ला को नीचे उतार लाता है। यशोदा लल्ला को गले लगा लेती है।
बाद में नंद आते हैं तो उनको इस घटना का पता चलता है। फिर एक बूढ़ी महिला कहती है कि ऐसी राक्षसी के हाथों बच जाना तो कोई दैवीय चमत्कार है। ऋषि शांडिल्य से कहकर पूजा और दान करवाओ।.. फिर ग्रामीणों में इस घटना को लेकर चर्चा होती है। फिर नंदरायजी पूतना का दाह संस्कार करवाते हैं।
पूतना की चिता से दैवीय रूप में उसकी आत्मा निकलकर एक दिव्य रथ पर सवार होकर वह आकाश में श्रीकृष्ण के समक्ष पहुंच जाती है। श्रीकृष्ण तब बताते हैं कि हमारे वामन अवतार के समय यह दैत्यों के राजा बली की पुत्री रत्नबाला थीं। हमें देखकर इसके मन में इच्छा जागृत हुई कि इसे मैं अपने हृदय से लगाकर पुत्र की भांति इसे मैं अपना स्तनपान कराऊं। हमने इस बालिका के मन के विचार जानकर हमने भी मन ही मन कहा तथास्तु। लेकिन जब हमने उसके पिता का सबकुछ छीन लिया तो रत्नबाला के मन में शत्रुता का भाव उठा और उसने सोचा यदि ऐसा छलिया मेरा पुत्र हो तो उसे मैं दूध में मिलाकर विष दे दूंगी। हमने उसकी वो इच्छा भी स्वीकार कर ली। नारदजी यह सुनकर श्रीकृष्ण की स्तुतिगान करते हैं। जय श्रीकृष्णा।