निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 15 अक्टूबर के 166वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 166 ) में श्रीकृष्ण की योजना के तहत द्रौपदी पर्दा करके रात में भीष्म पितामह के पास जाकर उनसे युद्ध में अपने सुहाग की सुरक्षा का आशीर्वाद मांगती है। पितामह समझ नहीं पाते है फिर भी वे कहते हैं कि हे प्रभु मेरे हाथ में तो कुछ भी नहीं है फिर भी यदि ये स्त्री ऐसा चाहती है तो मेरी वाणी में इतनी शक्ति दो। तब भीष्म पितामह उस महिला को सौभाग्यवतीभव: का आशर्वाद दे देते हैं। यह सुनते ही द्रौपदी अपने चेहरे का पर्दा हटा देती है।
यह देखकर पितामह चौंक जाते हैं और कहते हैं यज्ञसैनी द्रौपदी। यह सुनकर द्रौपदी कहती है हां पितामह आपकी पुत्रवधू जिसे आपने सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया है। अब धरती को पांडवहिन करने का अधिकार आपके पास नहीं रहा क्योंकि आपने मुझे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया है।
यह सुनकर पितामह कहते हैं कि तुमने तो मुझे धर्म संकट में डाल दिया है। इस पर द्रौपदी कहती है कि परंतु पितामह मैंने तो आपको अपने पोतों की हत्या करने से बचा लिया है। आप मुझे इसके लिए बधाई नहीं देंगे पितामह? पितामह कहते हैं कि नहीं क्योंकि यह तरकीब तुम्हारी नहीं थी। यह उपाय अवश्य ही तुम्हें भगवान श्रीकृष्ण ने बताया होगा। तभी वहां पर श्रीकृष्ण पांडवों सहित पधार जाते हैं और युधिष्ठिर कहते हैं कि आपने ठीक अनुमान लगाया पितामह। फिर सभी पितामह को प्रणाम करते हैं।
फिर सभी बैठकर चर्चा करते हैं। पितामह कहते हैं कि अब तो मैं धर्मसंकट में फंस गया हूं तो अंत में श्रीकृष्ण कहते हैं कि पितामह मैं अच्छी तरह जानता हूं कि इस समस्या का हल आपके पास है और फिर धर्मराज युधिष्ठिर को आपने युद्धारंभ के समय पांडवों के विजय होने के लिए बाद में कोई सुझाव देने का वचन भी तो दिया था।
यह सुनकर भीष्म पितामह कहते हैं कि समझ गया भगवन मैं आपका संकेत समझ गया। फिर भीष्म कहते हैं कि आज में धर्मराज को पांडवों की जीत का भी उपाय बताऊंगा, अपनी प्रतिज्ञा भी पूरी करूंगा और याज्ञसैनी को दिए हुए आशीर्वाद पर भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। सारी समस्याओं का एक उपाय है। युधिष्ठिर पूछता है वह क्या उपाय है पितामह? तब पितामह कहते हैं कि इसके लिए तुम सब पांडवों को पहले मेरी सहायता करना होगी। यह सुनकर युधिष्ठिर कहता है कि हम आपकी सहायता अवश्य करेंगे।
तब भीष्म पितामह कहते हैं कि तो फिर प्रतिज्ञा करो की मैं जैसा कहूंगा वैसा ही करोगे। यह सुनकर सभी प्रतिज्ञा करते हैं तब भीष्म पितामह कहते हैं कि कल युद्ध भूमि पर इससे पहले की मैं अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए तुम्हारा वध करूं, अर्जुन मेरा वध करेगा और तुम सब उसकी सहायता करोगे। यह सुनकर सभी खड़े होकर इससे इनकार कर देते हैं। अर्जुन पितामह के चरणों में गिरकर कहता है पितामह ये मुझसे नहीं होगा। तब पितामह कहते हैं कि अर्जुन तुम्हें कहने का अधिकर नहीं रहा और फिर तुम मुझे वचन दे चुके हो और यह मेरी आज्ञा भी। यह सुनकर अर्जुन कहता है पितामह आप बहुत कड़ी परीक्षा ले रहे हैं हमारी। तब पितामह कहते हैं कि कड़ी परीक्षा तो मेरा भाग्य ले रहा है। मैं जीवनभर अशांत रहा। अब मैं शांति के साथ मरने जा रहा हूं। अब मुझे शांति भी मिलेगी और विश्रांति भी जो केवल भगवान कृष्ण या तुम मुझे दे सकते हो।
अगले दिन जब युद्ध होता है तो अर्जुन और भीष्म पितामह दोनों ही युद्ध भूमि पर कोहराम मचा देते हैं। संजय कहता है कि महाराज पितामह ने पांडवों की सेना में हाहाकार मचा दिया है। यह सुनकर धृतराष्ट्र खुश होकर हंसते हुए कहते हैं कि अभी तो केवल हाहाकार मचा है। जब पितामह पांडवों का वध करेंगे तब प्रलय मच जाएगा।
दुर्योधन कहता है कि पितामह आपकी प्रतिज्ञा के पालन करने का समय आ गया है। भीम स्वयं आपके सामने आया है। उसे बचकर निकल जाने का अवसर मत दीजिये। यह सुनकर भीम अपनी गदा फेंककर दुर्योधन को घायल कर देता है। फिर भीम मन ही मन कहते हैं कि हे प्रभु! फिर डाल दिया ना धर्म संकट में, और कितनी परीक्षा लोगे मुझसे प्रभु। फिर भीष्म पितामह भीम की ओर देखकर कहते हैं कि ये तो है ही बुद्धि का शत्रु। यह जानते हुए कि मैंने पांडवों को पृथ्वी से निष्पांडव करने की प्रतिज्ञा ली है फिर भी मुझसे युद्ध करने के लिए आ गया। समझ में नहीं आता कि मेरा वध करने के लिए अर्जुन को पहले ही क्यों नहीं भेजा। प्रभु अब आप ही भीम की रक्षा कीजिये।
दुर्योधन फिर चीखता है कि पितामह अपनी प्रतिज्ञा को याद कीजिये और वध कर दीजिये भीम का। फिर पितामह भीम से युद्ध करने लग जाते हैं। तभी वहां पर अर्जुन आकर कहता है कि पितामह मैं आपको युद्ध के लिए आमंत्रित करता हूं। जय श्रीकृष्णा।