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चतुष्कोणीय शिव मंदिर की महिमा

बेशकीमती स्वर्ण शिखर वाला अद्भुत शिवालय

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- सुरेन्द्र दुबे

जबलपुर के संस्कारधानी में एक शिवालय ऐसा भी है, जिसका शिखर स्वर्ण जडि़त है। इस वजह से कई बार नास्तिक तबीयत के चोरों ने हाथ साफ करने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे। दरअसल, इस मंदिर को किसी बाहरी सुरक्षा की दरकार नहीं, क्योंकि यहाँ सबकी रक्षा और कल्याण करने वाले भूतभावन महादेव का वास है। वे हर बाधा को हर लेते हैं।

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आइए श्रावण सोमवार के शुभ दिन आपको टेमर-भीटा स्थित इस चमत्कारी शिव मंदिर की महिमा से परिचित कराते हैं।

शिलालेख के मुताबिक 1881 में ग्राम के प्रतिष्ठित गोस्वामी परिवार ने इस चतुष्कोणीय महाशिव मंदिर का निर्माण कराया था। सवा सौ साल बाद भी इसका स्वरूप जस का तस है। समीप ही बनवाए गए दो कुएँ मीठे जल के स्रोत हैं। वहीं आसपास रोपे गए पौधों ने आज विशाल दरख्तों की शक्ल ले ली है। बेल का छतनार वृक्ष सालभर शिवप्रिय बेलपत्र की सहज उपलब्धता सुनिश्चित कराता है।

शिव मंदिर के कारण इस इलाके को शिव मंदिर मोहल्ले के नाम से पुकारा जाता है। पूर्वज हरवंश गिरि, गुमान गिरि, प्रेम गिरि, शंकर गिरि, परशराम गिरि, लाल गिरि के बाद वर्तमान में पांचवीं पी़ढ़ी के गोविन्द गिरि, जगन्नाथ गिरि और बलराम गिरि गोस्वामी नियमित पूजापाठ कर रहे हैं।

इस शिवालय में नंदी महाराज को शिवलिंग के सामने न बैठाकर पीछे बैठाया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सामने प्रतिष्ठित नंदी शिवपूजा के आधे पुण्य के भागी बन जाते हैं। चूँकि इस मंदिर में नंदी को पीछे कर दिया गया है, अतः आस्था है कि पूजा करने वालों को समग्र पुण्य लाभ होता है। इसके अलावा जिलहरी को अन्य शिवालयों के विपरीत पूर्वामुखी रखा गया है। जिस पर प्रातः सूर्य कि पहली किरण पड़ती है। इस तरह भक्तों के लिए कल्याणकारी ऊर्जा संचित होती है।

यहाँ के धर्मप्रवण लोगों के अनुसार विगत वर्ष जोरदार गाज गिरने की आवाज आई। सब आशंकित थे कि न जाने किसका नुकसान हुआ होगा, लेकिन कहीं से कोई समाचार नहीं मिला। सुबह जब शिवालय के पट खुले तो देखा कि टाइल्स चकनाचूर थी। इस तरह साफ था कि स्वर्णजडि़त शिखर पर लगे त्रिशूलनुमा दिशासूचक ने तडि़त चालक की भूमिका निभाई या यूँ कहिए कि साक्षात शिव ने गाँव की रक्षा के लिए गाज को गरल की तरह पी लिया। सचमुच भोलेनाथ की महिमा अपरंपार है।

शिवालय में श्री सूर्यदेव, पद्‌मासनी गौरी और सिद्ध गणेश, गंगामैया, नर्मदामैया, दत्तात्रेय और भैरव के विग्रहों के अलावा चौसठयोगिनी भी विराजमान हैं।

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