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श्रावण मास में नवग्रहों की शांति करते हैं 84 महादेव

सूर्य ग्रह के लिए पूजें अरूणेश्वर महादेव को

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ज्योतिर्विद सीता शर्मा

जानिए कौन से महादेव करते हैं सूर्य व चंद्र ग्रह की शांति

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Navgrah Shanti

नवग्रहों के अधिष्ठात्र देवता भगवान शिव हैं। भारतीय ज्योतिषशास्त्र में जीवन पर नवग्रहों के पड़ने वाले प्रभाव तय किए गए हैं।

नवग्रहों में प्रथम सात ग्रह विशेष रूप से मायने रखते हैं बाकि राहु व केतु संस्कृति के दूसरे पड़ाव की अवधारणा हैं। नवग्रहों को भगवान शिव के अधिपत्य में से माना है। नवग्रहों के अधिपत्य देवता भगवान शिव हैं। स्कंदपुराण, अग्निपुराण, लिंगपुराण, शिवमहापुराण, वाराहपुराण आदि ग्रंथों में शिवजी की महिमा का वर्णन है।

ज्योतिष में ग्रहों का क्रम शिव के नेत्र की ज्योति से संचारित माना गया है। इसलिए जब भी जातक को किसी भी ग्रह की पीड़ा सताती है, तो उसे उक्त ग्रह की शांति के साथ भगवान शिव का अभिषेक पूजन करने की भी सलाह दी जाती है।

चौरासी महादेव, नवग्रह और श्रावण

स्कंदपुराण के अवंतिखण्ड में चौरासी महादेव की प्राचीन कथाओं का उल्लेख मिलता है। यह चौरासी महादेव स्वयं प्रकट हुए हैं। उज्जयिनी अवंतिका नाम से प्रसिद्ध उज्जैन नगर तीर्थ क्षेत्र माना गया है। तीर्थ क्षेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग दिव्य शक्तियों का पुंज कहे जाते हैं। यहां मौजूद हर शिवलिंग चैतन्य माने गए हैं।

यह पृथ्वी का नाभि केन्द्र है। इस दृष्टि से नाभि केन्द्र में स्थित उज्जैन को नवगृह की दृष्टि एवं दिशाओं के आधार पर शिव मान्यता से चौरासी महादेव में परिणित किया गया है। उज्जैन के चौरासी महादेवों में से कुछ महादेवों पर नवग्रह का आधिपत्य माना गया है। प्रस्तुत है विशेष जानकारी-

आगे पढ़ें सूर्य ग्रह के लिए पूजें अरूणेश्वर महादेव क


सूर्य ग्रह के लिए पूजें अरूणेश्वर महादेव को
76 वें महादेव लिंग अरूणेश्वर (सूर्य ग्रह आधिपत्य)

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पौराणिक कथा : स्कंदपुराण के अवंतिखण्ड में ब्रह्मा की पुत्रियों कद्रु व विनिता का कश्यप मुनि से विवाह हुआ। दोनों ने कश्यप मुनि से वर मांगे। कद्रु ने एक हजार सर्प पुत्र और विनिता ने दो तेजस्वी पुत्र मांगे। मुनि ने तथास्तु कहा।

कद्रु को एक हजार सर्पपुत्र हुए। विनिता को दो अण्डे। जब दोनो अण्डे पांच सौ वर्षों बाद भी पुत्र रूप में नहीं बदले तो विनिता ने एक अंडे को फोड़ दिया। अपरिपक्प अंडज पुत्र ने अपनी मां को श्राप दिया। मां को श्राप देने के बाद उक्त अरूण को दुख हुआ।

उसे नारद ने महाकाल वन स्थित लिंग के दर्शन करने को कहा। अरूण ने लिंग की उपासना की। शिव ने उसे वर दिया कि वह सूर्य के सारथी बने। सूर्य से भी पहले उसका उदय हो अरूण द्वारा पूजित लिंग ही अरूणेश्वर कहलाए। यह मंदिर उज्जैन में रामघाट के समीप है।

विशेष- श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पूजन और रूद्र अभिषेक से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। श्रावण मास में इस लिंग का दर्शन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इनकी उपासना से सूर्य ग्रह जनित दोषों का नाश होता है।

दान- गेहूं, गुड़, लाल, फूल, रक्त चंदन।


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