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गुरु गोविंद सिंह जी के बड़े साहिबजादों की शहीदी

- हरदीप कौर

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हमें फॉलो करें गुरु गोविंद सिंह
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आनंदपुर से निकलते समय सरसा नदी के तट पर श्री गुरु गोविंद सिंह जी अपने कई सिखों और परिवार से जुदा हो गए। सिर्फ 40 सिखों और बड़े साहिबजादे (गुरु गोविंदसिंह के दोनों बड़े बेटे) बाबा अजीत सिंहजी और बाबा जुझारसिंह के साथ गुरुजी चमकौर की ओर चल दिए।

साहिबजादे अजीत सिंह जी की शहीदी :- चमकौर के किले में पहुँचने के कुछ ही समय बाद मुखबिरों ने यह सूचना मुगलों को दे दी कि गुरुगोविंद सिंह सिर्फ 40 सिखों के साथ यहाँ रुके हुए हैं, तो मुगलों ने किले पर हमला कर दिया। इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह जी के शिष्यों ने मुगलों का मुकाबला बहुत वीरता से किया।

सिखों को एक-एक करके शहीद होते देख बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह से रहा न गया, वो गुरुजी के साथ अटारी में बैठे दुश्मनों पर त‍ीरों की बारिश कर रहे थे, पर अब उन्होंने चमकौर ने किले से बाहर जाकर दुश्मनों से दो हाथ करने की इच्छा व्यक्त थ‍ी।

दुनिया के इतिहास में यह पहली और बेमिसाल घटना है कि पिता ने अपने बेटे को अपने हाथ से शस्त्र सजाकर युद्ध भूमि में शहीद होने के लिए भेजा हो। गुरुजी ने पाँच सिखों को भी अजीत सिंह के साथ भेजा।

रणभूमि में जाते ही साहिबजादे अजीत सिंह ने तीर चलाकर दुश्मनों को खदेड़ना शुरू कर दिया, जालिम घबराकर पीछे हटने लगे, पर जब साहिबजादा जी के तीर खत्म हो गए तो दुश्‍मन फिर लौटे और उन्हें चारों ओर से घेर लिया।

साहिबजादा अजीत सिंह ने म्यान से तलवार निकाल ली और जोश और बहादुरी से जालिमों पर टूट पड़े। उन्होंने लाशों के ढ़ेर लगा दिए, पर एक दुश्मनों के दल ने उन्हें घेर लिया और उन पर वार करना शुरू कर दिए। और लड़ते-लड़ते साहिबजादा जी के कृपाण के टुकड़े हो गए। तब उन्होंने अपनी म्यान से ही दुश्‍मनों का सामना किया। इस तरह जोश और बहादुरी के साथ लड़ते हुए सिर्फ 17 साल की उम्र में वे शहीद हो गए।

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साहिबजादा जुझार सिंह जी की शहीदी :- पंद्रह वर्ष के बाबा जुझार सिंह ने जब अपने बड़े भाई को सूरमे की तरह शहीद होते देख कर पिता से विनती की कि उन्हें भी भाई की तरह युद्धभूमि में जाकर दुश्मनों से जूझने की आज्ञा दी जाए।

साहिब श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने प्रसन्नता के साथ बेटे जुझार सिंह को आज्ञा द‍ी और बड़े साहिबजादे की तरह अपने हाथों से हथियार सजाकर युद्धभूमि की अोर रवाना किया।

साहिबजादा जुझार सिंह शेर की तरह गरजते हुए युद्धभूमि में जा पहुँचे और पूरे जोश के साथ दुश्‍मनों से दो-दो हाथ करने लगे। उनकी बहादुरी, जोश और फुर्ति को देखकर दुश्मनों के बड़े-बड़े योद्धा भी दंग रह गए। और घबराकर इधर-उधर भागने लगे। उन्होंने योजना बनाई कि इस योद्धा को किसी भी तरह जीवित पकड़ा जाएँ।

जो भी साहिबजादे को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा उनकी तलवार से कटकर टुकड़े-टुकड़े हो गए। अंत में दुश्मनों की एक ताकतवर टुकड़ी ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और अकेला पाकर सारे एकसाथ उन पर टूट पड़े। साहिबजादे ने दुगुने बल से दुश्मनों को सफाया किया। और ‍अ‍ाखिर में जख्मी होकर जमीन पर गिर पड़े।

इस तरह गुरु जी के बड़े साहिबजादों ने वीरता और साहस से लड़ते हुए सिर्फ सत्रह और पंद्रह वर्ष की आयु में शहीदी प्राप्त कर दुनिया के इतिहास में शूरवीरता और बहादुरी की अद्वितीय मिसाल कायम की।

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