Shree Sundarkand

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(सप्तमी तिथि)
  • तिथि- वैशाख शुक्ल सप्तमी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • जयंती/त्योहार/व्रत/मुहूर्त- चित्रगुप्त प्रकटो.,रविपुष्य योग/भद्रा/मूल प्रारंभ
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia

आया बैसाखी का पावन पर्व

Advertiesment
हमें फॉलो करें Baisakhi celebrations in 2016
बैसाखी ऋतु आधारित पर्व है। बैसाखी को वैसाखी भी कहा जाता है। पंजाबी में इसे  विसाखी कहते हैं। बैसाखी कृषि आधारित पर्व है। जब फसल पककर तैयार हो जाती है  और उसकी कटाई का काम शुरू हो जाता है, तब यह पर्व मनाया जाता है। 


 

यह पूरे देश में  मनाया जाता है, परंतु पंजाब और हरियाणा में इसकी धूम अधिक होती है। बैसाखी प्रायः प्रतिवर्ष 13 अप्रैल को मनाई जाती है, किंतु कभी-कभी यह पर्व 14 अप्रैल को भी मनाया जाता है।
 
यह सिखों का प्रसिद्ध पर्व है। जब मुगल शासक औरंगजेब ने अन्याय एवं अत्याचार की  सभी सीमाएं तोड़कर श्री गुरु तेगबहादुरजी को दिल्ली में चांदनी चौक पर शहीद किया था,  तब इस तरह 13 अप्रैल 1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में 10वें गुरु, गुरु गोविंद  सिंहजी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिखों के  दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव का जन्म इसी महीने में हुआ था। सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस  के रूप में मनाते हैं। गोविंदसिंहजी ने निम्न जाति के समझे जाने वाले लोगों को एक ही  पात्र से अमृत छकाकर पांच प्यारे सजाए जिन्हें 'पंज प्यारे' भी कहा जाता है। ये पांच प्यारे  किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे। सब अलग-अलग जाति, कुल एवं अलग स्थानों के  थे। अमृत छकाने के बाद इनके नाम के साथ सिंह शब्द लगा दिया गया।
 
इस दिन श्रद्धालु अरदास के लिए गुरुद्वारों में जाते हैं। आनंदपुर साहिब में मुख्य समारोह  का आयोजन किया जाता है। प्रात: 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर  लाया जाता है। फिर दूध और जल से प्रतीकात्मक स्नान करवाया जाता है। इसके पश्चात  गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बिठाया जाता है। इस अवसर पर पंज प्यारे पंजबानी गाते  हैं। दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। प्रसाद लेने के  बाद श्रद्धालु गुरु के लंगर में सम्मिलित होते हैं। इस दिन श्रद्धालु कारसेवा करते हैं। दिनभर  गुरु गोविंदसिंह और पंज प्यारों के सम्मान में शबद और कीर्तन गाए जाते हैं।

शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियां मनाते हैं और पंजाब  का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।
 
बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। हिन्दुओं के लिए भी बैसाखी का बहुत  महत्व है। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना इसी दिन की थी। इसी  दिन अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था। राजा विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत का  प्रारंभ इसी दिन से किया था इसलिए इसे विक्रमी संवत कहा जाता है।

बैसाखी के पावन  पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। महादेव और दुर्गा देवी की पूजा की जाती  है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं। वे घर में मिष्ठान्न बनाते हैं। बैसाखी के पर्व पर  लगने वाला बैसाखी मेला बहुत प्रसिद्ध है। जगह-जगह विशेषकर नदी किनारे बैसाखी के  दिन मेले लगते हैं। हिन्दुओं के लिए यह पर्व नववर्ष की शुरुआत है। हिन्दू इसे स्नान,  भोग लगाकर और पूजा करके मनाते हैं।
 
लेखक का परिचय      
 - डॉ. सौरभ मालवीय                     
उत्तरप्रदेश के देवरिया जनपद के पटनेजी गांव में जन्म। सामाजिक संगठन से  जुड़ाव। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में  सहायक प्राध्यापक, जनसंचार विभाग के पद पर कार्यरत। 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया' विषय पर शोध। उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है जिनमें  मोतीबीए नया मीडिया सम्मान, विष्णु प्रभाकर पत्रकारिता सम्मान और प्रवक्ता डॉट कॉम  सम्मान आदि सम्मिलित हैं। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi