Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(द्वितीया तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण द्वितीया
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-सर्वार्थसिद्धि योग/मूल प्रारंभ
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

गुरु गोविंदसिंह की ये 10 विशेषताएं आपको पता होना चाहिए....

हमें फॉलो करें गुरु गोविंदसिंह की ये 10 विशेषताएं आपको पता होना चाहिए....
, शनिवार, 8 जनवरी 2022 (12:27 IST)
Guru Govind Singh Jee : धर्म, समाज देश की रक्षार्थ अपने अपना सबकुछ न्योछावर करने वाले 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह जो कार्य किया वह अतुलनीय और अकल्पनीय है। आओ जानते हैं गुरुजी की 10 खास विशेषताएं।
 
 
1. जिम्मेदारी : पिता के बलिदान के बाद गुरुजी ने 9 वर्ष की उम्र में ही अपनी जिम्मेदारी को समझकर गुरु की गुरुगद्दी पर बैठकर समाज को उचित दशा और दिशा दी थी।
 
2. नेतृत्व क्षमता : बहुत कम उम्र में ही गुरुजी ने नेतृत्व क्षमता हासिल करके सभी लोगों को अत्याचार के खिलाफ एकजुट करके रखा और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए। 
 
3. धार्मिक योद्धा : उन्होंने बहुत कम उम्र में ही मार्शल आर्ट और तलवार चलाना सीख लिया था। वे युद्ध कला में माहिर हो चुके थे। कहते हैं कि उन्होंने मुगलों या उनके सहयोगियों के साथ लगभग 14 युद्ध लड़े थे। इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। उन्होंने ही पंज प्यारे की परंपरा प्रारंभ करके खालसा पंथ की स्थापना की थी। बाबा बुड्ढ़ा ने गुरु हरगोविंद को 'मीरी' और 'पीरी' दो तलवारें पहनाई थीं।
 
4. भक्ति तथा शक्ति : गुरुजी ने एक योद्धा ही नहीं गुरु की भूमिका भी बहुत ही अच्‍छे से निभाई। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। गुरु गोविंद सिंह एक महान कर्मप्रणेता, अद्वितीय धर्मरक्षक, ओजस्वी वीर रस के कवि के साथ ही संघर्षशील वीर योद्धा भी थे। उनमें भक्ति और शक्ति, ज्ञान और वैराग्य, मानव समाज का उत्थान और धर्म और राष्ट्र के नैतिक मूल्यों की रक्षा हेतु त्याग एवं बलिदान की मानसिकता से ओत-प्रोत अटूट निष्ठा तथा दृढ़ संकल्प की अद्भुत प्रधानता थी तभी स्वामी विवेकानंद ने गुरुजी के त्याग एवं बलिदान का विश्लेषण करने के पश्चात कहा है कि ऐसे ही व्यक्तित्व के आदर्श सदैव हमारे सामने रहना चाहिए।
webdunia
guru govind singh jee
5. अद्भुत ग्रंथकार : गुरुजी ने कई ग्रंथों की रचना की थी। दसम ग्रंथ की रचना गुरु गोविन्द सिंह द्वारा की गई थी। यह पूर्ण रूप में दसवें पादशाह का ग्रंथ हैं। यह प्रसिद्ध ग्रंथ ब्रजभाषा, हिन्दी, फ़ारसी और पंजाबी में लिखे भजनों, दार्शनिक लेखों, हिन्दू कथाओं, जीवनियों और कहानियों का संकलन है। जफरनामा अर्थात 'विजय पत्र' गुरु गोविंद सिंह द्वारा मुग़ल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया था। ज़फ़रनामा, दसम ग्रंथ का एक भाग है और इसकी भाषा फ़ारसी है। इसके अलावा भी उन्होंने और कई ग्रंथ लिखे थे। 
 
6. त्याग एवं बलिदान : गुरु गोविंदसिंह मूलतः धर्मगुरु थे, लेकिन सत्य और न्याय की रक्षा के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए उन्हें शस्त्र धारण करना पड़े। गुरुजी के परदादा गुरु अर्जुनदेव की शहादत, दादागुरु हरगोविंद द्वारा किए गए युद्ध, पिता गुरु तेगबहादुर की शहीदी, दो पुत्रों का चमकौर के युद्ध में शहीद होना, आतंकी शक्तियों द्वारा दो पुत्रों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाना, वीरता व बलिदान की विलक्षण मिसालें हैं।
 
7. ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी : तख्त श्री हजूर साहिब नांदेड़ में गुरुग्रंथ को बनाया था गुरु। महाराष्ट्र के दक्षिण भाग में तेलंगाना की सीमा से लगे प्राचीन नगर नांदेड़ में तख्‍त श्री हजूर साहिब गोदावरी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस तख्‍त सचखंड साहिब भी कहते हैं। इसी स्थान पर गुरू गोविंद सिंह जी ने आदि ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी और सन् 1708 में आप यहां पर ज्योति ज्योत में समाए। ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी का अर्थ है कि अब गुरुग्रंथ साहिब भी अब से आपके गुरु हैं।
 
8. अयोध्या की रक्षा की थी : कहते हैं कि राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए यहां गुरु गोविंद सिंह जी ने अपनी निहंग सेना को अयोध्या भेजा था जहां उनका मुकाबला मुगलों की शाही सेना से हुआ। दोनों में भीषण युद्ध हुआ था जिसमें मुगलों की सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त दिल्ली और आगरा पर औरंगजेब का शासन था।
 
9. अडिग अकंप गुरु : गुरु गोविंद सिंह ने कई युद्ध लड़े उसमें उन्होंने अपने परिवार के साथ ही अपने कई बहादूर लोगों को खोया परंतु फिर भी उन्होंने संघर्ष को जारी रखा। गुरु गोविंदसिंह इस सारे घटनाक्रम में भी अडिग रहकर संघर्षरत रहे, यह कोई सामान्य बात नहीं है।
 
10. 52 कवि : गुरुजी के दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी। उन्होंने उत्तम तरह के साहित्य को बढ़वा दिया। उनकी धर्म, साहित्य और दर्शन में गहरी रुचि थी। उन्होंने पंजाबी के साथ ही फारसी और संस्कृत भाषा को भी सीख रखा था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Guru Gobind Singh Jayanti : गुरु गोविंद सिंह का जीवन परिचय