Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(सप्तमी तिथि)
  • तिथि- पौष कृष्ण सप्तमी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-श्री रामानुजन ज., राष्ट्रीय गणित दि.
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

गुरु गोविंद सिंह जी की पुण्यतिथि, जानें 10 अनसुनी बातें

हमें फॉलो करें गुरु गोविंद सिंह जी की पुण्यतिथि, जानें 10 अनसुनी बातें

WD Feature Desk

, बुधवार, 6 नवंबर 2024 (11:20 IST)
HIGHLIGHTS
  • गुरु गोविंद सिंह जी की पुण्यतिथि कब है?
  • सिखों के दसवें और अंतिम गुरु का शहीदी दिवस। 
  • गुरु श्री गोविंद सिंह जी का जीवन परिचय। 
Guru Govind Singh shahid diwas 2024: सिख धर्मग्रंथों के अनुसार गुरु गोविंद सिंह जी एक महान योद्धा, चिंतक, कवि एवं आध्यात्मिक नेता थे। आज सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। 
 
मान्यतानुसार इनमें ही गुरु नानक देव जी की ज्योति प्रकाशित हुई थीं, इसलिए इन्हें दसवीं ज्योति भी कहा जाता है। अत: गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के 10वें गुरु हैं, इनके जैसा न कोई हुआ और न कोई होगा। सिख धर्म के ऐसे महान कर्मप्रणेता, ओजस्वी कवि, अद्वितीय धर्मरक्षक और संघर्षशील वीर योद्धा के रूप में गुरु गोविंद सिंह जी को जाना जाता है। 
 
आइए यहां जानते हैं गुरु गोविंद सिंह जी के बारे में...
 
* सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म सन् 1666 को माता गुजरी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर पटना में पौष सुदी सप्तमी के दिन हुआ था। गुरु तेग बहादुर के घर जब पंजाब में स्वस्थ बालक के जन्म की सूचना पहुंची तो सिख संगत ने उनके अगवानी की बहुत खुशी मनाई। 
 
* उनके जन्म के समय उनके पिता गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे और उन्हीं के वचनानुसार बालक का नाम गोविंद राय रखा गया था। करनाल के पास ही सिआणा गांव में उस समय एक मुसलमान संत फकीर भीखण शाह रहता था। उसने ईश्वर की इतनी भक्ति और निष्काम तपस्या की थी कि वह स्वयं परमात्मा का रूप लगने लगा। 
 
* जब पटना में गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ उस समय भीखण शाह समाधि में लिप्त बैठे थे, उसी अवस्था में उन्हें प्रकाश की एक नई किरण दिखाई दी जिसमें उसने एक नवजात जन्मे बालक का प्रतिबिंब भी देखा। भीखण शाह को यह समझते देर नहीं लगी कि दुनिया में कोई ईश्वर के प्रिय पीर का अवतरण हुआ है। यह और कोई नहीं गुरु गोविंद सिंह जी ही ईश्वर के अवतार थे। 
 
* सिख धर्म के इतिहास में बैसाखी का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन कहा जाता है, क्योंकि वर्ष 1699 में इसी दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। जिन्होंने भारतीय विरासत तथा जीवन मूल्यों की रक्षा और देश की अस्मिता के लिए समाज को नए सिरे से तैयार करने हेतु खालसा के सृजन का मार्ग अपनाया। 
 
* वे कहते थे कि युद्ध की जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि वह तो उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। जो सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्म योद्धा होता है तथा ईश्वर उसे हमेशा विजयी बनाता है। अत: उनके बारे में यह कहा जा सकता हैं कि गुरु गोविंद सिंह जी जैसा महान पिता कोई नहीं, जिन्होंने खुद अपने बेटों को शस्त्र दिए और कहा, 'जाओ मैदान में दुश्मन का सामना करो और शहीदी जाम को पिओ।'
 
* गुरु गोविंद सिंह जी जैसा कोई दूसरा पुत्र नहीं हो सकता, जिसने अपने पिता को हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शहीद होने का आग्रह किया हो। वे कहते थे कि मनुष्य को 'जवानी, तै कुल जात दा अभिमान नै करना' यानी अपनी जवानी, जाति और कुल धर्म को लेकर मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे अपने आपको औरों जैसा सामान्य व्यक्ति ही मानते थे। 
 
* गुरु गोविंद जी वह व्यक्तित्व है जिन्होंने आनंदपुर के सारे सुख छोड़कर, मां की ममता, पिता का साया और बच्चों के मोह छोड़कर धर्म की रक्षा का रास्ता चुना। उनकी लड़ाई हमेशा दमन, अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार के खिलाफ होती थी। गोविंद सिंह जी ने कभी भी जमीन, धन-संपदा और राजसत्ता के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं। 
 
* श्री पौंटा साहिब या श्री पांवटा साहिब गुरुद्वारा का सिख धर्म में अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है, क्योंकि यहां पर गुरु गोविंद सिंह जी ने चार साल बिताए थे। कहा जाता है कि इस गुरुद्वारे की स्‍थापना करने के बाद उन्‍होंने दशम ग्रंथ की स्‍थापना की थी। उनके द्वारा लिखे गए दसम ग्रंथ, भाषा और ऊंची सोच को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं है।
 
* उन्होंने जफरनामा, अकाल उस्‍तत, चंडी दी वार, शब्‍द हजारे, जाप साहिब, बचित्र नाटक सहित अन्‍य रचनाएं भी की थीं। अत: एक लेखक के रूप में देखा जाए तो गुरु गोविंद सिंह जी धन्य हैं। 
 
* गुरु गोविंद जी ने अपने जीवन के अंतिम समय में सिख समुदाय को गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु मानने को कहा और वहां खुद ने भी अपना माथा टेका था। उन्होंने बुराइयों के खिलाफ अपनी आवाज हमेशा बुलंदी की तथा त्याग और वीरता की मिसाल रहे गुरु गोविंद सिंह जी सन् 1708 को नांदेड साहिब स्थित श्री हुजूर साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए थे। 
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Chhath Puja Suryoday Time: छठ पूजा पर सूर्योदय और सूर्यास्त का समय क्या है?