मूल मंत्र
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बाणी की आरंभता मूल मंत्र से होती है। ये मूल मंत्र हमें उस परमात्मा की परिभाषा बताता है जिसकी सब अलग-अलग रूप में पूजा करते हैं।
एक ओंकार
अर्थ : अकाल पुरख (परमात्मा) एक है। उसके जैसा कोई और नहीं है। वो सब में रस व्यापक है। हर जगह मौजूद है।
सतनाम :
अकाल पुरख का नाम सबसे सच्चा है। ये नाम सदा अटल है, हमेशा रहने वाला है।
करता पुरख :
वो सब कुछ बनाने वाला है और वो ही सब कुछ करता है। वो सब कुछ बनाके उसमें रस-बस गया है।
निरभऊ :
अकाल पुरख को किससे कोई डर नहीं है।
निरवैर :
अकाल पुरख का किसी से कोई बैर (दुश्मनी) नहीं है।
अकाल मूरत :
प्रभु की शक्ल काल रहित है। उन पर समय का प्रभाव नहीं पड़ता। बचपन, जवानी, बुढ़ापा मौत उसको नहीं आती। उसका कोई आकार कोई मूरत नहीं है।
अजूनी :
वो जूनी (योनियों) में नहीं पड़ता। वो ना तो पैदा होता है ना मरता है।
स्वैभं :
उसको किसी ने ना तो जनम दिया है, ना बनाया है वो खुद प्रकाश हुआ है... स्वयंभू।
गुरप्रसाद : गुरु की कृपा से परमात्मा हृदय में बसता है। गुरु की कृपा से अकाल पुरख की समझ इंसान को होती है।