गुरु नानक एक बार एक गांव में गए। उस गांव के लोग नास्तिक विचारधारा के थे। वे भगवान, उपदेश और पूजा-पाठ में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखते थे। वे साधुओं को ढोंगी की संज्ञा देते।
उन्होंने नानक के प्रति कटु वचन कहे और उनका तिरस्कार भी किया, तथापि नानक देव शांत ही रहे। दूसरे दिन जब वे वहां से रवाना होने लगे तो लोग उनके पास आए और उन्होंने कहा, 'जाने से पहले आशीर्वाद तो देते जाएं।'
नानकदेव मुस्करा दिए और बोले, 'आबाद रहो।'
वे जब समीपस्थ ग्राम में पहुंचे, तो वहां के लोगों ने उनका उचित सत्कार किया तथा रहने-खाने का भी उचित प्रबंध किया।
नानकजी ने उनके समक्ष प्रवचन किया। प्रवचन समाप्ति के उपरांत श्रद्धालु लोगों ने उनसे आशीर्वाद देने का आग्रह किया, तो नानकदेव बोले, 'उजड़ जाओ।' शिष्यों ने ये विचित्र आशीर्वाद सुने तो उनकी कुछ समझ में न आया।
उनमें से एक से न रहा गया और वह पूछ ही बैठा, 'देव, आपने तो बड़े ही विचित्र आशीर्वाद दिए हैं। आदर करने वालों को तो उजड़ जाने का आशीर्वाद दिया है, जबकि तिरस्कार करने वालों को आबाद रहने का। मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया। कृपया स्पष्ट करें।'
तब नानकदेव हंसते हुए बोले, 'सज्जन लोग उजड़ेंगे तो वे जहां भी जाएंगे, अपनी सज्जनता के कारण उत्तम वातावरण बना लेंगे, किंतु दुर्जन यदि अपना स्थान छोड़ें तो वे जहां जाएंगे, वहीं का वातावरण दूषित बनाएंगे, इसलिए उन्हें आबाद रहने का आशीर्वाद दिया।'
नानक देव के वचन सुनकर शिष्य ने उनका चरण स्पर्श किया और कहा, 'गुरु देव आप जो भी करते और सोचते हैं उनसे पीछे ज्ञान छिपा होता है जिसे हम तुच्छ प्राणी समझ नहीं सकते हैं।'