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जानिए प्रमुख गुरुद्वारा साहिब

हमें फॉलो करें जानिए प्रमुख गुरुद्वारा साहिब
गुरु नानकदेव के जीवन से जुड़े प्रमुख गुरुद्वारा साहिब जानिए 
 
1. गुरुद्वारा कंध साहिब- बटाला (गुरुदासपुर) 
गुरु नानक का यहां बीबी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत्‌ 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहां गुरु नानक की विवाह वर्षगांठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।
 
2. गुरुद्वारा हाट साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) 
गुरुनानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहां शाही भंडार के देखरेख की नौकरी प्रारंभ की। वे यहां पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को 'तेरा' शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
 
3. गुरुद्वारा गुरु का बाग- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला)
यह गुरु नानकदेवजी का घर था, जहां उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था। 
 
4. गुरुद्वारा कोठी साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) 
नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की आशंका में नानकदेवजी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानकदेवजी को छोड़ कर माफी ही नहीं मांगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 
 
5.गुरुद्वारा बेर साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) 
जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे, तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहां पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन वे वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतिनाम। गुरु नानक ने वहां एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है। 
 
6. गुरुद्वारा अचल साहिब- गुरुदासपुर 
अपनी यात्राओं के दौरान नानकदेव यहां रुके और नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद यहां पर हुआ। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। नानकदेवजी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है, ऐसा बताया। 
 
7. गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक- गुरुदासपुर 
जीवनभर धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद नानकदेवजी रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन्‌ 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए। 

 


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