बारह वर्ष में एक बार मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर बने ग्रहों के दिव्य योग से उज्जैन में सिंहस्थ मनाया जाता है। एक माह तक चलने वाले इस महापर्व के दौरान मोक्षदायिनी शिप्रा में स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु उज्जैन आते हैं। ऐसी मान्यता है कि कुंभ पर्व पर स्नान करने से वे सभी फल एक साथ प्राप्त होते हैं, जो एक हजार कार्तिक स्नान, सौ माघ स्नान, अनगिनत वैशाख व नर्मदा स्नान करने तथा सहस्र अश्वमेध, सौ बाजपेय यज्ञ करने अथवा पृथ्वी की एक लाख प्रदक्षिणा करने से प्राप्त होते हैं।
स्कंद पुराण में शिप्रा नदी को महत्व देते हुए उसे मोक्षदायिनी बताया गया है। ऐसी भी कथा मिलती है कि विष्णु भगवान की अंगुली को शिव द्वारा काटने पर उसका रक्त गिरकर बहने से यह नदी के रूप में प्रवाहित हुई, जो उत्तरवाहिनी होने से और महत्वपूर्ण हो गई।
वैज्ञानिक सत्य यह है कि जल ही जीवन है। जहां जल नहीं, वहां जीवन की कल्पना भी नहीं। जीवन की पहली उत्पत्ति जल से ही हुई और मानव या जीव शरीर का दो-तिहाई भाग नीर से ही निर्मित है। जल के महत्व को निरूपित करना भी इस तरह के पर्व का उद्देश्य है। पीने योग्य जल को 'आचमनीय' कहा जाता है। उसी प्रकार हाथ-मुंह धोने योग्य जल को 'अर्घ्य' और अतिथि के चरण कमल शुद्ध करने वाले जल को पाद्य कहा जाता है। गतिशील होने से नदियों के जल को इन कार्यों के योग्य माना गया है। जल केवल प्यास ही नहीं बुझाता, वरन् वह शोधक भी है, जो हमें शुद्ध करता है। इसीलिए जल में स्नान की परंपरा शुरू हुई।
सर्वत्रच दुर्लभ क्षिप्रा सोयम् साम ग्रहस्तथा।
सामेश्वर: सोमवार: सकारा: पंच दुर्लभ।। (स्कंद पुराण)
शिप्रा स्नान का पौराणिक महत्व अवंतिका खंड में भी वर्णित है।
कार्तिक चैव वैशाखे उच्चे नीचे दिवाकरे।
शिप्रा स्नान: प्रदुर्वित क्लेश दु:ख निवारणम्।।
इस प्रकार माना जाता है कि सिंहस्थ कुंभ के 10 महायोगों के अवसर पर यदि शिप्रा में स्नान किया जाए तो मुक्ति प्राप्त होती है-
एते दशमहायोगा: स्नाने मुक्तिफलप्रदा:।
इस प्रकार सिंहस्थ स्नान का माहात्म्य स्पष्ट होता है। माना जाता है कि वेद-विक्रयी, स्वाध्याय-संध्या से रहित, दुष्टबुद्धि, नास्तिक, शैयादान लेने वाला तथा देव, गुरु एवं ब्राह्मण के द्रव्य का हरण करने वाला भी सिंहस्थ में स्नान करता है तो वह अपने पापों से छुट जाता है, क्योंकि शिप्रा नदी तीनों लोकों में दुर्लभ है। यह प्रेत मोक्षकारी एवं स्नानकर्ताओं की मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली नदी है। इस नदी में पूरे मास स्नान का महत्व है किंतु यदि ऐसा संभव न हो तो मात्र 5 दिन स्नान करने पर भी फल प्राप्त होता है।
सिंहस्थ स्नान का विधान भी अत्यंत प्राचीन एवं शास्त्रसम्मत है। आध्यात्मिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से मान्य यह पर्व खगोलीय ज्ञान पर आधारित एवं सम्पोषित है। यह मानव मन की आध्यात्मिक तृप्ति, उच्च मनोदशा एवं सांसारिक मुक्ति प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय माना गया है। यह शारीरिक एवं मानसिक पवित्रता का सोपान है। सिंहस्थ और कुंभ दोनों पर्वों का मेल होने से उज्जैन में शिप्रा स्नान का महत्व अधिक है। साथ ही एक कथा भी प्रचलित है। माना जाता है कि आत्रि नामक एक ऋषि ने अपना एक हाथ ऊपर ही उठाए रखा। तपस्या पूर्ण होने पर ऋषि ने जब नेत्र खोले तो देखा कि उनके शरीर से प्रकाश की दो धाराएं प्रवाहित हो रही हैं। एक आकाश की ओर गई, जो चंद्रमा बन गई और दूसरी जमीन की ओर जो शिप्रा बनकर प्रवाहित हो रही है। इसीलिए ये प्राकृतिक दैवीय शक्तियां हैं, जिन्हें पूजा जाता है।
नदियों के किनारे सभ्यताएं फली-फूली हैं, तो ऋषियों की तपस्याएं भी फलीभूत हुई हैं। नदियों से संगीत के रूप में ऋचाएं गुंजायमान हुई हैं। सनातनी ज्ञान की गंगा भी यहीं से प्रवाहित हुई है। यहां स्नान स्वर्गारोहण का द्वार है। भारतीय सांस्कृतिक संरचना के आध्यात्मिक जीवन में जल जीवन का आधार है। जन्म से मृत्यु तक के सभी संस्कारों, उत्सवों एवं पर्वों में स्नान शुद्धि का महत्व है। आचमन, मार्जन, तर्पण, देवार्चन सबके लिए जल अपेक्षित है। जिनके महत्व को प्रतिपादित करता है कुंभ स्नान।